सत्य की खोज में

Friday, July 8, 2011

मैं और मेरा डॉगी

27 जून 2011 : हमारी खुशकिस्मती है कि हम बोल सकते हैं। जरा सोचिये उन बेजुबानों के बारे में जिनके पास इंसानों की तरह सब कुछ है यहाँ तक कि दिमाग भी। परंतु वह इंसान की भाषा में बोल नहीं सकते। हाँ, अपनी भाषा में अवश्य बोलते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि कई बार हमें पढ़े-लिखे लोग वह नहीं समझा पाते जो एक बेजुबान जानवर हमें सिखा देता है ........ वे बेजुबान हैं पर ना समझ नहीं। वे भी समझते हैं  कि कौन उनसे प्यार करता है और कौन नफरत ........... कई बार एक बौद्धिक व्यक्ति की तुलना में बेजुबान जानवर हमें जीवन का वह पाठ पढ़ा देते हैं जो जीवन जीने के लिए आवश्यक है। जानवरों की हरकतें केवल मस्ती करने के लिए नहीं है बल्कि उससे बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है।
 
मैं कभी भी पशु प्रेमी नहीं रहा। इसके बावजूद मेरे घर में तीन साल से एक डॉगी और एक तोता पल रहा है। दो महीने पूर्व घर में एक एक्वेरियम भी आ गया । इसमें विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियां अठखेलियाँ करती हैं। मुझे ऐसा लगता है कि एक दिन हमारा घर मिनी-जू में तब्दील हो जाएगा। इनमें से पिछले कुछ दिनों से डॉगी के प्रति मेरा काफी लगाव हो गया है। डॉगी का नाम हम लोगों ने जिम्मी रखा। जिम्मी के व्यवहार ने आज मुझे इतना झकझोर दिया कि जो भी मेरा परिचित मुझ से मिल रहा है, मैं उससे उसी (डॉगी) की चर्चा कर रहा हूँ।
 
बचपन से लेकर आज तक मेरे बेटे की दिलचस्पी जानवरों व पक्षियों में रही है। तीन साल पूर्व घर में बेटा एक पिल्ला व तोता लाया। मेरे अलावा मेरी पत्नी, पुत्रवधु अर्थात बेटे के अलावा परिवार के सभी सदस्यों ने पशु -पक्षी लाने का विरोध किया। इस पर बेटा मायूस होने लगा तो हम लोगों का दिल पसीजा और हमने उन्हें पालने की हामी भर दी। इसके बाद चाहे-अनचाहे उनके खाने-पीने पर हम सभी लोग ध्यान देने लगे। धीरे-धीरे हम सभी का उनके प्रति लगाव सा हो गया।
जिम्मी के खाने-पीने व रहने के ढंग को देखकर मैं उसके बारे में प्रायः टिप्पणी करता हूँ कि यह पिछले जन्म में जरूर कोई अच्छा इन्सान रहा होगा लेकिन इससे जाने-अनजाने में कोई ऐसा अपराध हो गया होगा जिससे इसे डॉगी (कुत्ते) की योनि में जन्म लेना पड़ा।

मैं सुबह नाश्ते में प्रायः सेव व अँकुरित मूंग खाता हूँ। जैसे ही मैं नाश्ता करने बैठता हूँ जिम्मी मेरे पास आकर बैठ जाता है। मैं भी अपने नाश्ते में से उसे खिलाता हूँ। इसी बीच यदि मेरा ध्यान टेलीविजन देखने या अखबार पढने अथवा अन्य किसी काम में चला जाये और उसे खिलाना भूल जाऊं तो वह भौंककर मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। लेकिन पेट भरते ही वह वहाँ से चला जाता है। आज भी ऐसा ही हुआ। अभी मेरा नाश्ता  समाप्त नहीं हुआ कि वह मेरे पास से जाने लगा। मैंने उसे आवाज दी। वह मेरे पास नहीं आया और दूर जाकर बैठ गया। आज उसके इस व्यवहार ने मुझे झकझोर दिया और मुझको अहसास कराया कि मुझ से तो यह जिम्मी ज्यादा समझदार है। उसका पेट भर गया तो उसने खाना बन्द कर दिया। एक मैं हूँ कि पेट भर जाने के बाद भी यदि कोई थोड़ा सा कुछ लेने के लिए आग्रह करे तो मना नहीं कर पाता, भले ही बाद में अधिक खाने से कोई परेशानी हो। खाने को लेकर मेरी यह हालत तब है जब कि डायबटीज की बीमारी के कारण डाक्टर ने मुझे हमेशा भूख से कम खाने की सलाह दी है। इसके बावजूद मैं चाहे-अनचाहे सुबह इतना अधिक खा लेता हूँ कि दोपहर में भूख नहीं लगती फिर भी लंच खा लेता हूँ।

आज भी सेव व अंकुरित मूंग का नाश्ता खत्म हुआ था कि रोजाना की तरह बहु दो चपाती व सब्जी ले आयी। इसके बाद एक परांठा और ले आयी। मैंने मना भी किया। उसने थोड़ा आग्रह किया कि मैंने उस परांठे को भी ले लिया। जिस दिन मैं दो रोटी के बाद एक रोटी या परांठा और खा लेता हूँ तो पूरे दिन परेशान रहता हूँ इसके बावजूद खाने की इस नुकसानदायक आदत को नहीं छोड  पाया।

माना जाता है कि व्यक्ति अपनी आदतों के वशीभूत रहता है। अच्छी आदतें उससे अच्छा कार्य करवाती हैं और बुरी आदतें बुरा। ऐसा ही भोजन के क्षेत्र में भी है। भोजन की भी अच्छी और बुरी आदतें होती हैं। आवश्यकता से अधिक खाना बुरी आदत है। भोजन की अच्छी आदत है सन्तुलित और अपनी आवश्यकतानुसार खाना। ऐसा नहीं है कि बुरी आदत को छोड़ा नहीं जा सकता। इसके लिए प्रयास करना पड ता है और संकल्प लेना पड़ता  है। जिसका संकल्प जितना दृढ  हो वह उतनी जल्दी उससे मुक्ति पा जाता है। कमजोर संकल्प वाले बार-बार संकल्प लेते हैं और बार-बार तोडते हैं। खाने के मामले में मैंने भी अपनी आदतों को सुधारने के लिए कई बार संकल्प लिये। उनका थोड़ा-बहुत प्रभाव पड़ा भी है। लेकिन जितना पडना चाहिए उतना नहीं।

मेरे डॉगी ने आज मुझे वो सिखाया जो एक बौद्धिक व्यक्ति अपने तर्क-वितर्क के जरिये भी मुझे नहीं सिखा पाया। मैनें अपने डॉगी से आवश्यकता से अधिक न खाने का पाठ पढ़ा । मैनें संकल्प लिया कि आज से मैं उतना भोजन ग्रहण करूंगा जितना आवश्यक है। स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी है कि हम बार-बार बीमार न पड़े । अगर मैं अधिक खाना नहीं खाऊँगा तो रोज-रोज की बीमारी से छुटकारा मिलेगा और एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकूंगा। लेकिन यह सब तभी हो सकता है जब मैं अपने संकल्प पर दृढता से कायम रह सकूँ। अगर मेरा प्रण पूरा होता है तो इसका सम्पूर्ण श्रेय मेरे डॉगी जिम्मी को जाएगा।

No comments:

Post a Comment