लेकिन देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस जश्न का हिस्सा नही बन पाये। ऐसा नहीं है कि ये लोग किसी खास समुदाय के हैं या ये देशभक्त नहीं हैं या इनकी रूचि क्रिकेट में नहीं है। बल्कि ये सभी लोग भी जश्न मनाना चाहते हैं। अपना देश जीतने पर कौन जश्न मनाना नही चाहेगा।
मैं प्रत्येंक माह के पहले रविवार को अपने पडोसी मिश्रा जी से मिलने जाता हूँ। इस बार भी गया। मिश्रा जी नास्ता कर रहे थे। सामने टी.वी. बन्द पड़ा था। मैंने पूछा - ''टी.वी. क्यों बन्द कर रखा है? क्या टी.वी. खराब है? उन्होंने लम्बी सांस लेते हुए कहा,-''टीवी तो ठीक है। कल रात से हर चैनल पर क्रिकेट विश्व कप की जीत के जश्न मनाने की खबरें आ रही हैं। मैं तो बहुत परेशान हूँ क्रिकेट की लाइव टेलीकास्ट से। एक माह से अधिक हो गया टीवी पर क्रिकेट ही क्रिकेट।''
उन्होंने अपनी पीडा का खुलासा करते हुए कहा - बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। हम टी.वी. पर क्रिकेट देखें और मजा लें तथा बच्चों को देखने के लिए मना करें तो क्या यह उचित हैं? क्या उनका मन मैच देखने का नहीं करेगा? अभी क्रिकेट विश्व कप टूर्नामेंट का जुनून समाप्त हुआ नहीं है कि आठ अप्रैल से आई.पी.एल. क्रिकेट शुरू हो जायेगा। 10 अप्रैल को मेरे बेटे की आई.आई.टी. में एडमिशन लेने के लिए प्रवेश परीक्षा है। उसके बाद 16-17 अप्रैल को उत्तर प्रदेश राज्य की इन्जीनियरिंग प्रवेश परीक्षा है। क्या सरकार को पता नहीं है कि मार्च-अप्रैल के महीनों में केन्द्र व प्रदेश सरकार की बोर्ड की परीक्षाएं होती हैं। बोर्ड की इन परीक्षाओं के बाद इन्जीनियरिंग व मेडीकल में एडमिशन लेने के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ रहती हैं। क्रिकेट के इस लाइव टेलीकास्ट से केवल हम ही परेशान नहीं है। आप अनुमान लगा सकते हैं कि पूरे देश में हमारे जैसे कितने माता-पिता इससे परेशान होंगे।
मैंने उनसे पूछा कि इस समस्या का समाधान क्या है? वे बोले-'' इसका समाधान तो है लेकिन करेगा कोई नहीं। क्योंकि इससे सरकार, बड़ी-बडी कम्पनियों, खिलाडियों व मीडिया की तो मोटी कमाई होती है।
हाँ, इसका एक समाधान है। कोई समाज सेवी सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करें तो सुप्रीम कोर्ट जरूर इसे गम्भीरता से लेगी। कोर्ट के आदेश से ही इस पर अंकुश लग सकता है।''
मैं मिश्रा जी की बातों को सुनकर गम्भीरता से उनकी बातों पर विचार करने लगा।
देश में मिश्रा जी जैसे करोडों लोग होंगे। मिश्रा जी शायद इससे इतने दुःखी न भी होते यदि कुछ टी.वी. चैनलों ने अति न की होती। अपने देश के निजी टी.वी. चैनलों में पिछले एक सप्ताह से एक अरब से ज्यादा आबादी वाले इस महादेश में क्रिकेट की जंगी उत्तेजना के अलावा कोई खबर ही नहीं दिखी बल्कि विज्ञापनों की आंधी और युद्धोन्मादी झंझावात ने मिलकर छोटे परदे पर सुनामी सा ला दिया।
समस्या तो गम्भीर है। समस्या का समाधान शायद एक झटके में न निकले। लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इस पर बहस तो छिड ही सकती है। गौरतलब है कि अमेरिका व चीन जैसे बडे कई देशों में क्रिकेट नहीं खेला जाता।
आप की मिश्रा जी से क्रिकेट पर जो बात हुई है उसमे तो बहुत ही दम है इसको मैने भी अपने जीवन में महसूस किया है .. लेकिन आप ने इतने सुन्दरता से इसे अपने ब्लॉग पर लिखा है इसे पड़ कर जरुर कोई पहल तो होगी .. अनंत जी आपका ब्लॉग (बहुत से लोग वंचित रह गए विश्वकप की जीत का जश्न मनाने से ) पड़ कर लगा मनो अपनी समस्या पड़ रहा हु .....
ReplyDeleteअनन्त जी बहुत बहुत धन्यवाद