सत्य की खोज में

Friday, March 16, 2012

साठ साल की उम्र में पहली बड़ी ख़ुशी

20 फरवरी 2012। जीवन में यदि किसी को बड़ी-बड़ी  चीजें बिना संघर्ष  के आसानी से मिल जायें तो उसे उनके महत्व का पता नहीं चलता। और यदि छोटी चीज भी बहुत प्रयास व इन्तजार के बाद मिले तो वह बहुत बड़ी  लगती है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ।

अनेक लोगों की शादी बहुत मुश्किल से होती है। शादी हो गयी तो बच्चे के लिए तरसते हैं। मगर मेरी शादी यूँ ही हो गयी। इक्कीस वर्ष की उम्र में दोस्त ने एक रिश्ता  बताया और हो गयी शादी। शादी भी ऐसी कि मानो ईश्वर  कह रहा हो कि बता तुझे क्या चाहिए, मैं सब दूँगा। पत्नी मुझ से ज्यादा शिक्षित , मुझ से ज्यादा वेतन व बड़े  पद वाली मिली। पत्नी का परिवार मेरे परिवार से हर मामले में इक्कीस नहीं बल्कि बाईस था।

शादी के बाद एक साल पूरा ही हुआ था कि हमारी जिंदगी में कोई तीसरा आ गया। एक नन्हा मुन्ना बच्चा। वह भी लड़का । इसके अलावा भी जीवन में कई ऐसी उपलब्धियां रहीं जिन्हें पाकर मुझे तो कोई विशेष ख़ुशी नहीं हुई लेकिन बहुत से लोगों को उन उपलब्धियों से ईर्ष्या जरूर हुई। वे उपलब्धियां चाहे मेरी नौकरी की रहीं हो या मान-सम्मान की या कोई और .............................................।
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आज 20 फरवरी 2012, दिन सोमवार को मुझे पौत्र रत्न प्राप्त हुआ । इसकी ख़ुशी मुझे इतनी ज्यादा हुई  कि अपने साठ साल के जीवन काल में मिली इससे पहले की सभी खुशियाँ  गौण नजर आ रही हैं। बेटे की शादी के चार साल बाद यह बच्चा पैदा हुआ है। चार साल की इस अवधि के दौरान जो देखने व सुनने को मिला उसके बाद मुझे लगता है कि यह उपलब्धि अब तक की सबसे बड़ी  उपलब्धि है।
बेटे की शादी को अभी एक साल पूरा भी नहीं हुआ था कि लोगों ने बच्चे के बारे में पूछना शुरू कर दिया। जिसके जिससे सम्बन्ध थे, वह उससे पूछता था। मेरे जिनसे सम्बन्ध थे, वे मुझ से पूछते - बाबा कब बन रहे हो ? मिठाई कब खिलाओगे ? बेटे से बेटे के परिचित पूछते -बाप कब बन रहे हो ? बहु से बहु के परिचित पूछते। मुझ पर तो इन पूछने वालों का कोई खास असर नहीं पड़ता था मगर बहु आराधना इन पूछने वालों से तंग आ गयी थी। आराधना ने अपनी एक निकट की सम्बन्धी से तो यहाँ तक कह दिया था कि अब आगे से फोन न करना और अगर करना भी हो तो इस सम्बन्ध में बातें न करना। लेकिन निकट की सम्बन्धी तो निकट की थीं वह कैसे इस सम्बन्ध में बात करनी छोड  दे। उसको लगता था कि यदि इसे कोई बच्चा न हुआ तो ससुराल वाले इसका जीवन दूभर कर देंगे। और यही डरावना दृश्य  वह आराधना के सामने रखती। तरह-तरह की सलाह देती कि किसी डाक्टर से इलाज कराओ, अमुक मन्दिर में जाकर मन्नत मांगो, ...........................इत्यादि। आराधना ने उससे यह भी कह दिया कि उसके ससुराल वाले ऐसे नहीं हैं। उन्होंने तो आज तक उससे कुछ भी नहीं कहा है। इसके बावजूद वह आराधना को तरह-तरह से इसके लिए अन्त तक समझाती बुझाती रही। उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि वह तो दिल से भला चाहने वाली उसकी सच्ची हितैषी थी। लेकिन अब आराधना को तो ये भले की बातें चुभने लगी थीं।
लगभग छः माह पूर्व एक शाम को जब मैं घर पहुंचा तो बेटे व बहु ने डाक्टर का एक पर्चा दिखाया जिस पर लिखा था - प्रेगनेंसी पोजीटिव। मैंने इसे पढ कर उनकी तरफ देखा तो उनके चेहरों पर भी इसकी ख़ुशी  साफ दिखाई दे रही थी। उन्हें खुश  देखकर मैं भी बहुत खुश  हुआ। मेरे घर में एक नये मेहमान ने अपने आने की दस्तक दी थी।
अब हम सभी उस दिन का इन्तजार करने लगे जब यह सब सही सलामत से हो जाये और यह अधूरी ख़ुशी  पूरी ख़ुशी  में बदल जाये।

आराधना हमारे परिवार में इस प्रकार रहती है जिससे पहली बार मिलने वाले लोग काफी समय तक समझ ही नहीं पाते हैं कि यह इस परिवार की बहु है या बेटी। उसके रहन-सहन में ही नहीं बातचीत में भी खुलापन है। वह अपने सुख-दुःख को मुझे इस ढंग से बताती रहती है कि उसे देखकर लगता है कि वह मेरी बहु क्या बेटी भी नहीं बल्कि दोस्त है।
जब से आराधना को पता चला कि वह प्रेग्नेंट है तब से वह खुश तो दिखाई देती लेकिन उससे कहीं ज्यादा भयभीत दिखती। भयभीत इसलिए कि उसे तो इंजेक्शन  लगवाना ही जीवन मरण जैसा लगता और यदि डेलीवरी के समय आपरेशन कराना पड़ गया तो उसका तो आपरेशन शब्द सुनकर ही हार्टफेल हो जायेगा।
इन छः महीनों में शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो जब उसने अपने इस डर को व्यक्त न किया हो जबकि उसकी नियमित डाक्टरी जांच होती रही और डा० मीरा भार्गव उसे आश्वश्त  करती रहीं कि सब नार्मल चल रहा है। किसी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन चिन्ता तो ऐसी होती है कि वह मात्र किसी के समझाने से जाती नहीं है। वह तो तभी जाती है जब समस्या का निदान होता है। उसे निरन्तर चिन्तित देखकर मैं भी चिन्तित रहने लगा।

जैसे-तैसे छः माह भी बीत गये। आराधना को ड्‌यू डेट के आस-पास दर्द उठने लगे तो उसे अमरदीप अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।
डा० मीरा भार्गव ने एक दिन तो प्रयास किया कि डेलीवरी नार्मल हो जाये। परंतु नार्मल डेलिवरी के आसार नजर न आने पर उन्होंने आपरेशन करने का निर्णय लिया। इसकी जानकारी जैसे ही आराधना को मिली तो उसके चेहरे की हवाइंया उड़ने लगीं, होठ सूखने लगें, हाथ-पैर कांपने लगे। उसे देखकर हम लोगों की भी हालत पतली हो गई। आराधना को वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने अपने-अपने ढंग से समझाया। डा० मीरा भार्गव ने भी काफी समझाया कि आपरेशन का पता भी नहीं चलेगा और दस पन्द्रह मिनट में सब हो जायेगा। बहुत प्रयास के बाद वह जैसे ही सामान्य हुई उसे नर्सें आपरेशन थियेटर में ले गयीं।

अभी आधा घन्टा भी नहीं हुआ था कि एक महिला सहायक आपरेशन  थियेटर से एक बच्चे को लेकर बाहर आयी और उसने हमसे कहा - "बधाई हो, लड़का हुआ है, आज महाशिवरात्रि है - आपके घर में भोले शंकर ने जन्म लिया है। इसकी माँ भी ठीक है। इसे लेकर आप ऊपर अपने कमरे में पहुंचिये। हम इसकी माँ को भी लेकर वहाँ आ रहे हैं"। बच्चे को देखकर और उस महिला के शब्दों को सुनकर मेरी आंखों से आंसू छलकने लगे। महिला बोली - "अरे आप रो रहे हैं ? खुश होइये। सब अच्छे से निपट गया"। लेकिन मेरी तो जुबान पर जैसे ताला लग गया हो। चाहकर भी मुंह से शब्द नहीं निकला। ऐसे में उसे कैसे समझाता कि ये ख़ुशी के आंसू है। अपने इन अनायास आए आसुंओं को देखकर समझ आ गया कि इससे पूर्व आराधना की बड़ी बहिन अर्चना की आंखों में भी आंसू क्यों आ रहे थे। अर्चना आपरेशन  थियेटर में ऐसी जगह खड़ी थी जहां से वह झांक कर देख लेती थी कि अन्दर क्या हो रहा है। जैसे ही उसे पता चला कि लड़का हुआ है और जच्चा-बच्चा दोनों ठीक हैं तो उसकी आंखों में भी आंसू आ गये। वह बताने के लिए हमारे पास आयी थी। लेकिन आँखों में आंसू लिए वह बिना कुछ बताये वापस अन्दर चली गयी थी। हम भी नहीं समझे कि वे ख़ुशी के आंसू थे। और उसके आंसू देखकर हम तरह-तरह की बुरी कल्पनाओं में खो गये थे।

खैर !  हम ऊपर कमरे में पहुंचे। पांच मिनट बाद ही आराधना को भी सहायकगण स्ट्रेचर पर लिटाकर कमरे में ले आये। उस समय आराधना को ग्लूकोज  में मिलाकर दवाइयां चढाई जा रही थीं। अभी वह गफलत में थी। बहुत प्रयास के बाद केवल थोड़ी सी आंखें खोलती और हाँ - ना में कुछ जवाब दे देती।
धीरे-धीरे दो-तीन घंटों में उसे पूरी तरह होश आ गया। अब वह अपनी तरफ से भी बताने लगी कि बिना किसी दर्द के आपरेशन हो गया। और जब बच्चा इस दुनिया में आ गया तो वहाँ उपस्थित डाक्टरों ने उसे खुश करने के लिए कहा कि देखो - "तुम्हें लड़का हुआ है, बहुत सुन्दर भी है, तुम यही चाहती थी न ? और देखो बेटा, पैदा होने पर सब बच्चे रोते हैं और तुम्हारा बच्चा - माँ-माँ कहकर चिल्ला रहा है। अनोखा है न"।

जब आराधना यह सब हमें बता रही थी तो उस समय उसका व मेरे बेटे (उसका पति) का चेहरा देखने लायक था। इनके चेहरों पर छायी खुशियाँ बहुत कुछ बयां कर रही थी। इनकी खुशियों को देखकर फिर से मेरी आंखों में आंसू छलक आये। ईश्वर को कोटि-कोटि प्रणाम। मेरा परिवार आज पूर्ण हो गया।