सत्य की खोज में

Thursday, November 22, 2012

मैं और मेरी पत्नी


समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं जिन्हें मैं तीन श्रेणियों में बांट रहा हूँ। प्रथम श्रेणी में वे लोग आते हैं जो दूसरों के लिये जीते हैं अर्थात जो हमेशा दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं। दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो अपने सुखों  का भी ध्यान रखते हैं साथ ही दूसरों के सुख-दुख का भी ध्यान रखते हैं। तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो केवल अपने सुखों के बारे में ही सोचते हैं, उनको दूसरों के सुख-दुःख से कोई मतलब नहीं होता। प्रथम श्रेणी के लोगों को महान कहा जाता है। महानता का यह गुण अधिकतर महिलाओं की खूबी है। यह महानता किसी महिला को विश्वविख्यात समाज सेवी मदर टेरेसा बना देती है तो किसी के लिए यह मीठा जहर बन जाती है और धीरे-धीरे वह स्वयं ही उस मीठे जहर का शिकार हो जाती है। मेरी पत्नी भी महान थी लेकिन उसकी महानता उसे निगल गयी।

   मैंने और मेरी पत्नी ने एक साथ 37 साल का वैवाहिक जीवन बिताया। जिस समय हमारी शादी हुई उस समय मैं देहातनुमा एक कस्बे में साधारण सी नौकरी करता था और वह उस कस्बे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर शहर में एक मशहूर फैक्ट्री में सम्मानजनक पद पर नौकरी कर रही थीं। शादी के बाद मैंने भी उसी शहर में नौकरी प्राप्त कर ली।

जब वह बी.एस.सी. की पढ़ाई कर रही थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया। उस समय उनका छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था। घर के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए ही उन्हें नौकरी करनी पड़ी। उनके पिता का सपना तो उन्हें डाक्टर बनाने का था।
  
 उनके परिवार की तुलना में मेरा परिवार उनके बराबर का नहीं था। उनका वेतन मुझसे ज्यादा था। एक वाक्य में कहा जाए तो वह हर मामले में मुझसे बीस थीं। केवल एक मामले में उन्हें उन्नीस कह सकते थे, मेरे मुकाबले में उनका कद थोड़ा छोटा था। लेकिन वह नाक-नक्श से सुन्दर थीं।


 वह अपना पूरा वेतन एवं बोनस बिना मांगे मुझे दे देती थीं। उन्होंने अपने वेतन का कोई पैसा कभी अपने पास नहीं रखा। उनका स्वयं का वेतन अच्छा खासा था। लेकिन उन्होनें कभी भी अपने गहनों, कपड़ों और श्रृंगार पर पैसे खर्च नहीं किए। उन्हें ज्यादा फैशन करना पसंद नहीं था लेकिन उनके कपड़े पहनने का एक सलीका था। जबकि मुझमें सलीके से कपड़े पहनने का तौर तरीका नहीं था। वह कपड़ों पर प्रेस करके मुझे पहनने को देती थीं। उनके प्रयास से मैं भी थोड़ा बहुत सलीके से रहने लगा।
 
  मौसम चाहे गर्मी, सर्दी का हो अथवा बरसात का, वह घर की साफ-सफाई एवं खाना तैयार करके घर से लगभग 07 किलोमीटर दूर फैक्ट्री में सुबह 8 बजे तक पहुँच जाती थीं। वह प्रतिदिन सुबह मुझसे पहले सोकर उठती थीं। उन दिनों गैस के चूल्हे नहीं थे। पत्थर के कोयले की अंगीठी जलायी जाती थी जिसमें काफी समय बरबाद होता था और उसके धुएं का सामना भी करना पड़ता था। शाम को 5 बजे फैक्ट्री की छुट्टी के बाद लगभग 6 बजे तक वह घर लौटती थीं। आने के बाद सुबह के कपडों को धोती थीं। उन दिनों कपड़े धोने की मशीन नहीं थी। इसके बाद फिर शाम के खाने की तैयारी करतीं। इन बातों को थोड़ा विस्तार में बतलाने का मतलब यह है कि वह बहुत ही कर्मठ थीं। घर के सभी कार्यों को वह स्वयं करती थीं। किसी भी काम के लिये वह कोई नौकरानी नहीं रखना चाहती थीं। वह मितव्ययी भी थीं। मैंने जोर जबरदस्ती करके दो बार नौकरानी को रखा तो उन्होने कुछ ही दिनों में किसी न किसी कारण से उसकी छुट्टी करा दी।


 उन्होने अपने खाने पीने पर भी कभी ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह थी कि रात का खाना यदि थोड़ा बहुत बच जाता तो मुझे बिना बताए लंच बाक्स में रखकर ले जातीं। मतलब यह कि मुझे तो ताज़ा व अच्छा खाना बना कर देतीं मगर स्वयं बासी खाना खा लेतीं। वह अपनी सेहत का तनिक भी ध्यान नहीं रखती थीं।

परिवार की भलाई के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से अत्यधिक काम करने और अपनी सेहत का ध्यान न रखने का यह नतीजा निकला कि शादी के कुछ साल बाद से ही वह बीमार रहने लगीं और उन्हे 15 साल बाद नौकरी भी छोड़नी पड़ी। नौकरी छोड़ने के बाद भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। जीवन के अंतिम चार वर्ष तो ऐसे बीते कि वह चारपाई से उठकर अपने बल पर खड़ी भी नही हो सकती थीं। अन्तिम चार माह में दो बार एक-एक सप्ताह के लिए वह कोमा (मूर्छित) में भी चली गईं।

जब डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया तो अन्तिम दिनों में उनकी दुर्गति को देखकर मेरे मुख से यह निकलने लगा कि या तो ईश्वर इन्हे ठीक कर दे वरना इस शरीर से मुक्ति दे दे। ईश्वर ने मेरी पहली प्रार्थना को अनसुनी कर दूसरे पर अमल किया।


उनका मन बहुत निर्मल था। वह बिना किसी छल-कपट के निडरता से बात करती थीं। उनमें आगे बढ़ने की क्षमताएं थीं। उनकी कम्पनी के मैंनेजिंग डायरेक्टर उन्हे अपना सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी मानते थे। उनके नौकरी छोड़ने पर उन्हें काफी दुःख हुआ था। वह समाचार पत्र-पत्रिका पढ़ने व टेलीविजन देखने का शौक नहीं रखती थीं। शायद इसीलिए उनकी सोच परिवार तक सिमट कर रह गयी थी।

    उनके जीवन का विश्लेषण करता हूँ तो महसूस होता है कि उन्होने जितना ध्यान परिवार की सुख-सुविधाओं का रखा यदि थोड़ा बहुत वह अपनी सुख-सुविधा पर भी रखतीं तो शायद वह इतनी जल्दी इस दुनिया से न जातीं और न ही उनके जीवन के अंतिम साल इतने कष्टदायक होते। वह हर प्रकार से सशक्त थीं लेकिन उनकी महानता ने उन्हे अशक्त बना दिया और यह महानता विष बनकर उन्हे निगल गयी।


जब वह गंभीर रुप से बीमार थीं तो मैंने नजदीकी कई लोगों से बात की। मैंने उनसे पूछा कि आखिर इतनी महान महिला को ईश्वर किस बात की सजा दे रहा है। मुझे एक ही जवाब मिला, ‘‘शायद यह पिछले जन्म के किसी कर्म का भोग हो’’। मुझे नहीं मालूम कि इस जवाब में कितनी सच्चाई है। लेकिन मैं यह अवश्य महसूस करता हूँ कि अत्यधिक परिश्रम करने वाली पूर्णतः समर्पित पत्नी का जितना ध्यान मुझे रखना चाहिए था उतना मैं नहीं रख पाया। यदि शादी के बाद से ही आवश्यकतानुसार उनकी परवाह की गयी होती तो वह बीमार ही नहीं पड़तीं।

  मुझे लगता है कि परिवार के प्रति ऐसी सेवा भावना और अपने प्रति लापरवाही अधिकांश महिलाओं में पायी जाती है। जो महिलाएं सूझबूझ से जीवन जीती हैं वे परिवार के साथ-साथ अपना भी भला करती हैं। यह सूझबूझ कम महिलाओं में दिखायी देती है। जो औरतें सिर्फ दूसरों के लिये जीती हैं उन्हें अपना भी ध्यान रखना होगा क्योंकि वे एक परिवार की स्तम्भ होती हैं जिसके गिरने पर पूरा परिवार टूट जाता है। पति व बच्चों के बारे में वे जो सपने देखती हैं वे भी अधूरे रह जाते हैं। अपने लिए नहीं तो कम से कम अपने पति व बच्चों के लिए ही उन्हें अपना ध्यान रखना चाहिए।


औरत जब अपने पति एवं परिवार की सेवा करती है तो साधारणतः पुरुष इसे पत्नी का फर्ज समझते हैं। इसीलिए पुरुषों को महिलाओं के प्रति जितना संवेदनशील होना चाहिए वह उतना नहीं हो पाते। हम पुरुषों को महिलाओं से उम्मीदें तो बहुत ज्यादा होती हैं लेकिन हम उनकी भावनाओं और परेशानियों की ओर उतना ध्यान नहीं दे पाते हैं जितना जरुरी होता है। पत्नी के प्रति इस लापरवाही का अहसास पुरुषों को तब होता है जब वे बीमार पड़ना शुरु होती हैं और समय से पूर्व उनका जीवन समाप्त हो जाता है। उनके न होने पर परिवार बुरी तरह प्रभावित होता है। खासकर बच्चे। बच्चों के लिए माता-पिता दोनों ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए पुरुषों को भी इस मामले में विशेष ध्यान देना होगा।