सत्य की खोज में

Friday, April 1, 2011

देश की साक्षरता में इजाफा

देश के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त सी० चन्द्रमौली ने जनगणना 2011 के आंकड़े जारी किये हैं। अब देश की साक्षरता 65 से बढ कर 74 प्रतिशत  हो गयी है। यह ख़ुशी  की बात है मगर .........................।


हर दस साल में होने वाली जनगणना देश की आजादी के बाद पहली बार सन्‌ 1951 में हुई थी, उस समय देश की साक्षरता मात्र 19 फीसदी थी जो कि बढते-बढते 60 वर्ष  में 74 फीसदी हो गयी। जनगणना के आकड़े  बताते हैं कि इन साठ सालों में साक्षरता में सबसे अधिक इजाफा सन्‌ 1991 से 2001 के दशक  में हुआ। इस अवधि में इजाफा 13 फीसदी हुआ। अबकी बार जो साक्षरता में 9 फीसदी की वृद्धि हुई है वह तुलानात्मक दृष्टि  से पिछली बार से कम है। यह एक विचारणीय प्रश्न  है कि इस मामले में हम नकारात्मक धारा में क्यों आ गये।

Thursday, March 31, 2011

काश, शतक बनाने की होड़ क्रिकेट के अलावा अन्य सुखद गतिविधियों में भी होती

 जब क्रिकेट मैच होते हैं तो पूरा देश  क्रिकेटमय हो जाता है, क्रिकेट के रोमांच में डूब जाता है ।  जीवन की सारी गतिविधियाँ एक तरफ और क्रिकेट मैच एक तरफ। हर तरफ लोग टी.वी., रेडियो, कम्प्यूटर, मोबाइल पर आँख-कान लगाए दिखते हैं। आपस में मिलने पर पहली बात स्कोर की करेंगे, अभिवादन बाद में । लोगों में क्रिकेट के प्रति इतना जोश और जुनून होता है जिससे  मैच वाले दिन लोग घरों, आफिसों में टी.बी. से चिपककर बैठ जाते हैं व सडकों पर सन्नाटा छा जाता है और कभी-कभी तो अघोषित कर्फ्यू जैसी  स्थिति   हो जाती है।

क्रिकेटरों के लिए शतक बनाना बहुत बड़ी  उपलब्धि होती है। इस पर मीडिया में बड़ी बड़ी  सुर्खियाँ बनती हैं। उस खिलाड़ी  का नाम खेलों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है । इसलिए खिलाडियों में रनों का शतक और शतक के बाद अगला शतक बनाने की होड़  लगी रहती है। सचिन तेंदुलकर एक ऐसे महान बल्लेबाज हैं जो शतकों का शतक बनाने में मात्र एक शतक   पीछे  हैं ।  क्रिकेटरों के इस स्वभाव से प्रेरित होकर यदि सभी लोग जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी शतक बनाएं तो देश का स्वरुप  ही   बदल जाएगा।


व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकता  है - रोटी, कपड़ा  और मकान जिन्हें  शिक्षा , स्वास्थ्य, सुरक्षा और न्याय के द्वारा प्राप्त  किया जा सकता है। किसी भी देश में जिस दिन सभी लोग  शिक्षित, स्वस्थ, सुरक्षित हो जाएंगे और उन्हें न्याय मिलने लगेगा उस दिन लोगों की रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या स्वतः समाप्त हो जायेगी। इससे न केवल लोगों की रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या हल होगी बल्कि देश नई-नई ऊँचाईया छूने लगेगा ।  काश, व्यक्तियों में ऐसा कुछ योगदान देने की होड़ होती कि जिस क्षेत्र - गाँव, क़स्बा, शहर, प्रदेश में वे हैं  उस क्षेत्र में लोग शत-प्रतिशत  साक्षर, निरोगी व सुरक्षित हों और उन्हें शत-प्रतिशत ‌ न्याय मिले। 

देश की साक्षरता 65 प्रतिशत है। केरल शत-प्रतिशत  साक्षर प्रदेश  होने का तमगा हासिल कर चुका है। काश , यह होड़ देश के अन्य प्रदेशों  में होती कि साक्षर प्रतिशतता   के मामले में वह भी शतक बनाये यानि शत-प्रतिशत साक्षर प्रदेश  होने का मुकुट अपने सर पर लगाये।
 
''एक नवयुवक की शरारत  ने जब झकझोर दिया प्रौढ़ 'बौद्धिक' को '' शीर्षक के अन्तर्गत मैंने पिछली प्रविष्टि  23 मार्च को शाम  6 बजे ब्लॉग पर डाली। ढाई घंटे बाद ब्लॉग को देखा तो ''जागरण जंक्शन" ने उसे अपने फीचर्ड ब्लॉग पृष्ट  पर पहला स्थान दिया था। जब तक 33 पाठक उसे देख चुके थे और कुछ पाठकों ने टिप्पणी भेजकर इसकी सराहना भी की थी। अगले दिन प्रातः ब्लॉग को देखा गया तो पाठकों की संख्या  शतक पार कर चुकी थी और टिप्पणियों की संख्या  में इजाफा हुआ था। इस पर एक मित्र ने प्रातः ही बधाई दी और कहा - ''आपने तो इतनी जल्दी शतक बना लिया।''


मैं उनके चेहरे को देख कर तरह-तरह से मनन-चिन्तन करने लगा कि प्रायः हर लेखक की इच्छा रहती है कि उसकी रचना अधिक से अधिक पढ़ी  जाए और उसे व उसकी रचना को सराहना भी मिले। यह इच्छा मेरी भी रहती है। लेकिन असली आनंद मुझे उस समय मिला जब मुझे यह पहली बार पता चला कि मेरी रचना - ''डिग्री से ज्यादा महत्वपूर्ण है योग्यता हासिल करना'' का किसी व्यक्ति पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा  है । मुझे उस समय बहुत ज्यादा ख़ुशी  होगी जिस समय मैं ऐसे लोगों की संख्या  का शतक बनायूं जिन पर मेरी रचनाओं का सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो। तो वह मेरा सही मायने में शतक होगा ...................। मुझे इंतजार है उस दिन का जब लोग अपने-अपने क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं न्याय देने-दिलाने में शतक बनाने की होड में जुट जाएंगे।