लेखक पर विशेष छाप छोडती हैं, साधारण टिप्पणियों का भी प्रभाव पड़ता है | यदि
लेखक को उसकी रचना पर कोई टिप्पणी नहीं मिलती तो वह छटपटाता है | उसके
मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं- क्या पाठक को रचना अच्छी नहीं लगी,
उसमें क्या कमी रह गयी.....इत्यादि |
उसमें क्या कमी रह गयी.....इत्यादि |
ब्लॉग पर मेरी पहली प्रविष्टि 28 मार्च 2010 को प्रकाशित हुई | अभी तक मैं कुल
आठ प्रविष्टि ही ब्लॉग पर प्रकाशित कर सका |
मैंने जब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया था उस समय मुझे यह भी नहीं पता
था की ब्लॉग की रचनाओं पर टिप्पणियां भी होती हैं | सौभाग्य से पहली
प्रविष्टि ही ब्लागवाणी पर हिट हुई अर्थात उस दिन वह प्रविष्टि सबसे ज्यादा
पढ़ी गयी | इसके बाद की प्रविष्टियाँ भी खूब सराही गयीं और काफी टिप्पणियां
मिलीं | कभी कभी तो प्रविष्टि के प्रकाशित होने के 10 मिनट बाद ही टिप्पणी
मिल गयी |
इन टिप्पणियों का मुझ पर यह असर हुआ की प्रविष्टि को अब तो ब्लॉग पर
प्रकाशित करने के बाद ही टिप्पणियों की प्रतीक्षा करता हूँ | टिप्पणियां देर से या
कम आने पर छटपटाहट होती है | सबसे ज्यादा छटपटाहट -16 जून 2010
की नवीनतम प्रविष्टी "डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लायन पुष्पा स्वरुप से विशेष मुलाकात"
को ही लीजिये | प्रविष्टि प्रकाशित होने के 24 घंटे तक केवल एक टिप्पणी मिली |
इस अन्तराल में काफी छटपटाहट रही | इसको लेकर मन में तरह-तरह के सवाल
उठे | साथियों से इस पर चर्चा की | एक साथी ने कहा - इंटरव्यू कुछ लम्बा हो
गया हो इसलिए पढ़ा ही न गया हो | दूसरे साथी ने कहा- चूँकि यह इंटरव्यू
लायन्स क्लब के एक बड़े पदाधिकारी का था और बहुत से लोग इन क्लबों को कोई
अच्छी नजर से नहीं देखते, शायद इसलिए न पढ़ा गया हो, आदि-आदि |
मैंने साथियों को अपनी सोच से अवगत कराया | "यह इंटरव्यू विशेष मुलाकात के
रूप में था | इसलिए बड़ा था | इसमे विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करके उस
सख्शियत से अधिकतम विचार लेने की कोशिश की जाती है | जहाँ तक
'लायन्स क्लब' की बात है तो 'लायन्स क्लब' का गुणगान करने की कोशिश मैंने
नहीं की |'लायन्स क्लब' तो केवल माध्यम था | गुणगान तो एक महिला के उस
संघर्ष का था जिससे वह सशक्त बन रही है और दूसरी महिलाओं को भी सशक्त
बनाते हुए समाज के लिए काम कर रही है | उद्देश्य यह भी था कि अन्य
महिलाएं सशक्त बनने के लिए, कुछ करने के लिए प्रेरणा ले सकें|
यह चर्चा चल ही रही थी कि एक साथी ने कहा "ई-मेल खोलकर देखो शायद
अब कोई टिप्पणी आ गयी हो |" देखा कि 'चर्चा मंच' की संयोजिका सुश्री अनामिका
का एक सन्देश था - "डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लायन पुष्पा स्वरुप से विशेष मुलाकात"
को 'चर्चा मंच' में 18 जून 2010 (प्रवष्टि प्रकाशित - 16 जून 2010) को सजाया
जायेगा | इसको पढ़कर सभी साथी ख़ुशी से उछल पड़े | उस दिन का इंतजार
करने लगे |
अगले दिन (18 जून) जब 'चर्चा मंच' को देखा गया तो पता चला की "चर्चा मंच"
पर कुल 18 प्रविष्टियों को सजाया गया है जिसमे अपनी प्रविष्टि छठे क्रम पर
थी | देखकर बड़ी ख़ुशी हुई |
थी | देखकर बड़ी ख़ुशी हुई |
ऐसी ख़ुशी तब भी हुई थी जब 'चिठ्ठा जगत' के संयोजक श्री अनूप शुक्ल ने "महिला.
आई.ए.एस. टापर इवा सहाय से विशेष मुलाकात" को चिठ्ठा चर्चा के लिए चुना
और उसे बहुत ही सुन्दर ढंग से 'चिठ्ठा जगत' पर प्रकाशित किया |
आम तौर पर चर्चाओं से बहुत ख़ुशी मिलती है, लेकिन एक टिप्पणी ऐसी मिली
जिसने ख़ुशी के साथ मार्गदर्शन भी किया | प्रविष्ट "मैं और मेरा शौक" पर कनाडा से
'उड़न तस्तरी' के श्री समीर लाल की टिप्पणी "अच्छा और खूब पढना ही अच्छा
लेखन लेकर आयगा ... जारी रहें' ने बहुत प्रेरित किया | यह मुझे लगभग प्रत्येक
दिन याद आती हैं और कुछ अच्छा पढने के लिए प्रेरित करती है| इसी प्रेरणा के
लेखन लेकर आयगा ... जारी रहें' ने बहुत प्रेरित किया | यह मुझे लगभग प्रत्येक
दिन याद आती हैं और कुछ अच्छा पढने के लिए प्रेरित करती है| इसी प्रेरणा के
चलते कुछ न कुछ पढ़ लेता हूँ और मन में श्री समीरलाल जी को नमन करता हूँ |
प्रविष्टि "स्टार एंकर हंट पर विशेष रपट" पर चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से
'अपनी माटी' के श्री मणिक जी की टिप्पणी उस समय बहुत सांत्वना देती है जब
किसी प्रविष्टी पर टिप्पणियाँ कम आती हैं या नहीं आती हैं | श्री मणिक जी की
टिप्पणी थी - "आपके ब्लॉग पर आकर कुछ तसल्ली हुई | ठीक लिखते हैं | सफर
जारी रखें | पूरी तबियत के साथ लिखते रहें| टिप्पणियों का इंतजार न करें | वे
आएँगी तो अच्छा है नहीं भी आया तो क्या| हमारा लिखा कभी तो रंग लायेगा |
वैसे भी साहित्य अपने मन की ख़ुशी के लिए भी होता रहा है | "
अन्त में, मैं उन सभी भाई-बहनों का हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ , धन्यवाद
करता हूँ जिन्होनें मेरी प्रविष्ठियाँ पढ़ीं, उन पर टिप्पणियां दीं, उन्हें विशेष महत्व
देकर अन्य लोगों को पढवाने के लिए प्रेरित किया | इनसे मेरा उत्साहवर्धन हुआ है,
मुझे मार्गदर्शन मिला है |
प्रविष्टियों पर टिप्पणियों के महत्व को जानते-समझते हुए भी मैं अपने ब्लागर
भाई-बहनों को उनकी प्रविष्टियों पर अभी टिप्पणियां नहीं भेज पा रहा हूँ | इसके
पीछे मेरी कुछ 'विकलांगताएँ' हैं | मैं इन 'विकलांगताओं' को दूर करने की कोशिश में
हूँ, जैसे ही ये सीमाएं दूर होंगी वैसे ही मैं भी अपनी टिप्पणियां देनी शुरू करूंगा | तब
तक के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | आशा है अपना स्नेह बनाये रखेंगे |
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आप अपने लेख से समाज को कुछ देना चाहते हैं तो लिखना जारी रखें |टिपण्णी मिले या न मिले लेकिन लोगों को आप के लेख से लाभ तो मिलता ही है |
ReplyDeleteआपको क्या लगता है कि आपके लिखने से हमारी आदते सुधर जायेंगी ? अरे हमको तो सिर्फ पढ़ने का शोंक रखते है
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