सत्य की खोज में

Sunday, March 23, 2014

प्रगति के पथ पर अग्रसर शिवाली की कहानी, उन्हीं की जुबानी



इसे अपने देश के अध्यापन क्षेत्र की विडम्बना ही कहेंगे कि इसमें लोग तब आते हैं जब उन्हें मनपसन्द अन्य क्षेत्रों में काम करने का अवसर नहीं मिलता। ऐसे लोग विद्यार्थियों को कैसा पढ़ाते हैं और विद्यार्थी जीवन में क्या बन रहे हैं यह अब किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि आज विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री हासिल करने की कोशिश करते हैं। उनमें ज्ञान अर्जित करने की ललक पैदा नहीं हो रही है। परिणाम वह जीवनभर भटकते रहते हैं । लेकिन समाज में ऐसे लोग भी हैं जो जीवन में आदर्श शिक्षक बनना चाहते हैं। वे वास्तव में राष्ट्र निर्माता बनने का सपना देखते हुए उसके लिए संघर्ष करते हैं। यह अलग बात है कि ऐसा बहुत कम लोग करते हैं। शिवाली ऐसे ही विरलों मे से एक दिखाई दे रही हैं। शिवाली जुनूनी मेनेजमेंट गुरू डा0 रामेश्वर दूबे की जुनूनी शिष्या हैं।


    इलाहाबाद निवासी 27 वर्षीय सुश्री शिवाली एम.बी.ए. करने के बाद देहरादून से पी.एच.डी. कर रही हैं। डा0 दूबे शिवाली के एक्सटर्नल गाइड हैं। प्रो0 दूबे के निर्देशों का पालन करते हुए शिवाली ने हयूमन रिर्साेसेज मैनेजमेंट विषय पर लिखकर अपना रिसर्च पेपर टेक्सास (अमेरिका) स्थित यूनिवर्सिटी आॅफ हयूस्टन के जर्नल में प्रकाशित करने को भेजा। यूनिवर्सिटी की ओर से जर्नल के सम्पादक ने प्रक्रिया पूरी करके शिवाली को पेपर की स्वीकृति एवं बधाई देते हुए यूनिवर्सिटी में जून 2014 में अपना पेपर प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है। इस सेमिनार में दुनिया भर से चुनिंदा लोग अपना पेपर प्रस्तुत करेंगे। शिवाली इस आमंत्रण से बेहद खुश हैं।
  

  वह फिलहाल इलाहाबाद स्थित शम्भूनाथ इन्स्टीट्यूट आॅफ इन्जीनियरिंग एण्ड टेक्नोलोजी के ट्रैनिंग  एण्ड प्लेसमेंट विभाग में ट्रैनिंग  प्लेसमेंट अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। इन पंक्तियों के लेखक ने जब शिवाली से इस उपलब्धि के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की तो वह कई बार भावुक हो गयीं, उनकी आँखें भर आयीं। कभी अपने गाइड गुरू के संघर्ष भरे व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए तो कभी अपने जुनून के बारे में बताते हुए।

 इस लंबी बातचीत में पता चला कि अपने गाइड डा0 दूबे को अपना आदर्श मानने वाली शिवाली की  रूचि शिक्षक बनने में है। वह उनके जैसा ही टीचर बनना चाहती हैं जिनके सीने में सोसाइटी को कुछ योगदान देने की आग धधक रही है। वह अपना सपना पूरा करने के लिए पूरी तरह सक्रिय हैं।
 

   शिवाली मानती हैं कि व्यक्ति को वही काम करना चाहिए जिसमें उसकी रूचि हो क्योंकि व्यक्ति अपना सौ फीसदी उसी क्षेत्र में देता है जिसमें उसकी रूचि होती है और तभी बड़ी सफलता मिलती है। व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि उसकी रूचि के क्षेत्र में ही उसका कैरियर बन जाये। यदि ऐसा न हो पाये तो भी रूचि को नहीं मरने देना चाहिए। उसमें यथा सम्भव काम करते रहना चाहिए अन्यथा जीवन में फ्रस्ट्रेशन शुरू हो जायेगा जो बहुत घातक हो सकता है।

   यहाँ प्रस्तुत है प्रगति के पथ पर अग्रसर शिवाली की दिलचस्प एवं प्रेरक कहानी, उन्हीं की जुबानी -
    मैं एक सम्पन्न एवं सुशिक्षित परिवार से हूँ। मेरे पिता श्री राजेश कुमार श्रीवास्तव भारतीय रेलवे में इलेक्ट्रिकल इन्जीनियर हैं। मेरी माता श्रीमती सपना श्रीवास्तव हाउस वाइफ हैं। मैं अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान हूँ। मेरी स्कूलिंग कलकत्ता की है। मेरी सीनियर सेकेन्डरी की पढ़ाई कलकत्ता के मशहूर स्कूल लोरेटो हाउस से हुई है। उन दिनों मेरे पिता की पोस्टिंग कलकत्ता में थी। जब मैं कक्षा 12 में थी तो मैंने ट्यूशन ली थी। उस समय डा0 रामेश्वर दूबे कलकत्ता में सेन्ट्रल गवर्नमेंट के टेस्टिंग विभाग में थे और शाम को ट्यूशन पढ़ाते थे। इन्जीनियरिंग में एडमिशन लेने के लिए तैयारी कराते थे। उस समय उन्होंने मुझे ट्यूशन पढ़ाया था। उनका हमारे परिवार में आना-जाना शुरू हो गया। सन् 2004 में मेरे पिता का ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया और हम इलाहाबाद आ गये। मैंने इलाहाबाद से बी.टेक (इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड कम्यूनिकेशन) की पढ़ाई पूरी की तथा इसके बाद देहरादून से एम.बी.ए. पास किया।

एम.बी.ए. के बाद पी.एच.डी. करने का मन हुआ तो इच्छा हुई कि पी.एच.डी. डा0 दूबे के निर्देशन में करूं। इसके लिए मैंने उनसे फोन पर सम्पर्क किया। उन्होंने सुझाव दिया कि अभी खूब पढ़ो और अपना ज्ञान बढ़ाओ। इसके लिए उन्होंने मुझे कई किताबें भी भेजीं। मैंने उन्हें पढ़ा और इनके अतिरिक्त भी काफी पढ़ा। समय-समय पर मैं उनसे पी.एच.डी. कराने का आग्रह करती रहीं और वे टालते रहे।
 

    पी.एच.डी. के लिए प्रवेश परीक्षा पास करके मैने सन् 2012 में देहरादून से पी.एच.डी. का फार्म भरा। वहाँ से दो इन्टर्नल गाइड भी मिल गये। मैं डा0 दूबे को अपना एक्सटर्नल गाइड बनाना चाहती थी। मैंने वहीं से डा0 दूबे को फोन करके भारी मन से कहा कि आप एक्सटर्नल गाइड बनने की स्वीकृति दे दीजिये अन्यथा अब मैं पी.एच.डी. करने का इरादा छोड़ दूंगी। इस पर भी उन्होंने एक घंटे सोचने के लिए समय मांगा। एक घंटे बाद उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी। जैसे ही मुझे उनका हस्ताक्षर युक्त स्वीकृति पत्र ई-मेल से मिला, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यह बात जनवरी 2013 की है।
    

दरअसल जो गाइड हमेशा कुछ नया करने और अपने विद्यार्थियों से नया कराने की इच्छा रखते हैं वे अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देते वे इस मामले में बड़े सजग रहते हैं और विद्यार्थी को खूब परखते हैं कि वह उस योग्य है भी या नहीं। आश्वस्त होने पर ही उसे अपना विद्यार्थी बनाते हैं। डा0 दूबे भी उन्हीं में से एक हैं।
   

 इसके बाद से उनके निर्देशन में समय-समय पर मैंने तीन पेपर तैयार किये। एक पेपर आई.आई.टी. दिल्ली भेजा। दूसरा ए.आई.एम.एस. इन्टरनेशनल कान्फ्रेंस 2014 में तथा तीसरा यूनिवर्सिटी आफ हयूस्टन (अमेरिका) भेजा। तीनों प्रतिष्ठित स्थानों पर भेजे पेपर स्वीकृत हुए।

    मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगी कि यूनिवर्सिटी आॅफ हयूस्टन में जो पेपर स्वीकृत हुआ है वह डा0 दूबे सर के कारण ही हुआ क्योंकि इस यूनिवर्सिटी में पेपर भेजने के लिए बहुत ऊँचे मानदण्ड हैं । इस पेपर की मैं मेन आथर (लेखक) थी और डा0 दूबे को-आथर (सह लेखक) थे। उन्होंने ही अपनी ओर से इसे भेजा था क्योंकि वे ही यूनिवर्सिटी के मानदण्डों को पूरा करते थे। 
         
        

डा0 दूबे सर के व्यक्तित्व से मैं बहुत प्रभावित हूँ। वह मूलरूप से उत्तर-प्रदेश के मऊ जिले से हैं, जो पिछड़ा हुआ क्षेत्र है। वह साधारण परिवार से हैं। इस समय सिम्बोसिस इन्स्टीट्यूट आफ आपरेशन्स, नासिक में प्रोफेसर तथा पुणे में डीन रिसर्च हैं । आज वे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त शिक्षक हैं । उनकी आज मेनेजमेंट गुरू के रूप में पहचान है। उन्होंने जो आज अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है, उसके लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। उनके देश-विदेश के प्रतिष्ठित जर्नलों में सौ से अधिक पेपर प्रकाशित हो चुके है। उन्होंने मैनेजमेंट पर कई किताबें लिखी हैं तो कईयों के सहलेखक हैं। वे अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि बहुत से देशों में सेमिनारों में भाग ले चुके हैं। समय-समय पर उन्हें विदेशों में लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता है।

    उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने पैतृक स्थान मऊ को छोड़ा और अपने एक रिश्तेदार के पास कलकत्ता चले गये। वहीं से उन्होंने स्कूलिंग की। इसके बाद कलकत्ता से ही बी.टेक व एम.टेक पास किया। इसके बाद वह वहीं सेंन्ट्रल गवर्नमेंट के टेस्टिंग विभाग में नौकरी करने लगे और शाम को ट्यूशन पढ़ाते थे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद स्थित मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलोजी (एम.एन.आई.टी.) से एम.बी.ए. पास किया। उसी दौरान उन्हें आई.आई.एम. लखनऊ से फैलोशिप भी मिल गयी।
 

    इसके बाद उन्होंने ए.सी.सी. सीमेन्ट कम्पनी में नौकरी कर ली। कम्पनी के प्रोजेक्ट पर वे यू.के. गये। वहाँ उन्होंने पी.एच.डी. ज्वाइन कर ली। पी.एच.डी. पूरी करने के बाद उन्होंने मैनेजमेंट के छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षण क्षेत्र चुना। इस बीच वे आल इण्डिया एसोसियेशन आॅफ सप्लाई चेन मैनेजमेंट के एक्टिव मेम्बर बन गये। इससे जुड़कर उन्होंने कई पेपर तैयार किये जो खासे चर्चित हुए। कई किताबें लिखीं। आज वे डबल पी.एच.डी. हैं। इंग्लैंड से पोस्ट डाक्ट्रेट कर चुके हैं । डा0 दूबे सर का कहना है कि कर्म ही भगवान है। उनका कहना है कि इसमें किसी को भी बाधक नहीं बनने देना चाहिए चाहे कोई कितना भी प्रिय हो। उन्होंने स्वयं भी इस पर पूरा अमल किया। उनका कहना है कि अध्यापक का कर्म है पढ़ना और पढ़ाना। प्रायः वे अध्यापकों का इस ओर विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं कि अध्यापकों का कर्म केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि पढ़ना भी है। जो अध्यापक जितना ज्यादा पढ़ेगा वह उतना ज्यादा अच्छा पढ़ा पायेगा। देखने में आया है कि पढ़ाने के साथ खूब पढ़ने और अपनी नाॅलेज को अपटूडेट रखने वाले वे शिक्षक भी सफल शिक्षक बन गये जो मूलतः शिक्षक नहीं थे।  उन्होंने भी कीर्तिमान स्थापित किये।

उन्होंने कक्षा 9 से ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्वयं भी कड़ी मेहनत की। वह मनपसन्द कार्यक्षेत्र शिक्षण में नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। बहुत सी शिक्षण संस्थाओं एवं कारपोरेट घरानों के सलाहकार हैं। आज कई प्रतिष्ठित कारपोरेट घराने उनके रिसर्च को अपने यहाँ लागू करके अपना स्तर ऊँचा करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे आशा ही नहीं, पूरा विश्वास है कि वे एक दिन विश्व स्तर पर प्रथम पंक्ति के ख्याति प्राप्त मैनेजमेंट गुरूओं में से एक होंगे। वे मेरे ही नहीं बहुत से युवक-युवतियों के प्रेरण स्रोत हैं।

 अन्त में, मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित समझ रहा हूँ कि इस ब्लाॅग का उद्देश्य शिक्षक बिरादरी को पूरी तरह निकम्मी सिद्ध करते हुए शिवाली को महान सिद्ध करना नहीं है। मेरा उद्देश्य तो मात्र एक झलक यह दिखाना है कि ऐसे अवांछनीय माहौल में भी ऐसे लोग हैं जो समर्पित होकर अपना लक्ष्य पूरा करने में किस प्रकार लगे हुए हैं, संघर्ष कर रहे  हैं और दूसरों के लिए मिसाल बन रहे हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जिनका शिक्षण मनपसन्द कार्य नहीं था लेकिन वे जाने-अनजाने शिक्षण क्षेत्र में आ गये। उन्होंने अपने को शिक्षण में समर्पित कर कड़ी मेहनत की और सफल शिक्षक सिद्ध हुए। दुःखद यह हैे कि ऐसा भी लुप्त होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में डा0 रामेश्वर दूबे के संघर्ष और उनके वक्तव्य पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है।

                                                                                                                                         अनन्त अन्वेषी

3 comments:

  1. Okay sir, let me put it this way. Before picking a pen to inscribe, the topic and intent are the key factors that give shape to the final outcome. In your case, that has always been your strength. You have always chosen subjects that are inspirational from real life. The writing as always is very lucid. There is serenity in presentation. The message of "work is worship" is also clearly underlined. A lesson also well left for teachers and young generation about the field of education.
    Also, a big round of applause for Ms. Shivali and Dr. Dubey.

    Anirudha

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  2. Sir, your words will inspire our up coming youth who actually want to be a great teacher as Ms.Shivali and Mr.Dubey who work so hard for completing their dream come true in Education field. I would like to share one thing: Making the best of it and making the best out of it, represent the low road and the high road of life. Take the high road. Keep climbing. No matter what obstacles you may face, keep going! Dont be afraid to do more work. Make the best out of life always shivali.

    Congratuation to Shivali & Dubey Sir for all success.

    And Best wishes for future.

    Nisha

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  3. सर मै आपके सारे सेगमेंट पढ़ता हूँ पर कभी उनपर कोई विचार नहीं प्रगट करता I आपकी एक कहानी बहुत अच्छी लगी मै और मेरी पत्नी जिसमे आप के जीवन के कुछ अंश मिलते है जिनसे सीख्नने को मिलता है I आप के विनम्र स्वाभाव ईमानदारी और कार्य के प्रति निष्टभाव आपको सबसे अलग बनाता है हमको आरके सर तिवारी सर एवं आपके मार्गदर्सन में ये कॉलेज आज एक मुकाम पे पंहुचा है जिससे हमलोगो को प्रेडा की जरुरत है हम आप के विचारो से बहुत ही प्रेरित होते है मै इसके पहले भी कई बार पड़ा हूँ क्योंकी मुझे हिंदी साहित्य में रूचि होने के साथ साथ किताबो को पढ़ने का शौक अगर कोई नए कुछ जुड़ता है जरूर पड़ते है
    आपका विवेक कुमार त्रिपाठी

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