सत्य की खोज में

Wednesday, June 9, 2010

मैं और मेरी मुलाकात

मैं जिज्ञासु हूँ | शायद कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु | अनगिनत प्रश्न दिमाग में कुलबुलाते रहते हैं | इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के लिए यथा संभव पुस्तक, पत्रिका, अख़बार आदि पढता रहता हूँ, टेलीविजन देखता हूँ व लोगों से बातचीत करता हूँ |

चार  माह पूर्व जिस दिन से ब्लॉग जगत में प्रवेश किया है उस दिन से ब्लॉग जगत को जानने की कोशिश में लगा हूँ | इसी के चलते पिछले माह एक मित्र के माध्यम से जानकारी मिली कि इलाहाबाद के कोषाधिकारी श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी "सत्यार्थ मित्र" के नाम से ब्लॉग लिखते हैं | उन्हें ब्लॉग के बारे में अच्छी जानकारी है | उन्होंने ब्लागिंग पर हाल ही में महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) एवं हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार आयोजित कराया  था |

मैं उनसे उनके आवास पर मिला | लगभग दो घंटे बातचीत हुई | बातचीत बड़ी ज्ञानवर्धक व दिलचस्प रही | श्री त्रिपाठी जी ने पहली ही मुलाकात में जिस आत्मीयता से बातचीत की उससे उनसे मिलना एक बड़ी उपलब्धि रही |

मैं लिक्खाड़ नहीं हूँ लेकिन बहुत सालों से कुछ न कुछ लिखने के लिए बेचैन रहता हूँ | न लिख पाने के कई कारण लगते हैं उनमे से एक मन में बैठी यह धारणा है कि लिखने से कुछ 'फायदा' तो है नहीं फिर लिखने में समय एवं ऊर्जा क्यों खर्च की जाये |

मैं सोचता हूँ कि कुछ ऐसा लिखूं जिसे पढ़कर लोगों की सोच मेरे अनुसार हो जाये, दुनिया में क्रांति हो जाये | फिर सोचता हूँ कि बहुत से लोगों ने बहुत-बहुत अच्छा लिखा है उसे पढ़कर भी दुनिया  नहीं बदली तो मेरे लिखे को पढ़कर ही क्या हो जायेगा | लिखने की इस निरर्थकता के बोध ने भी कुछ नहीं लिखने दिया |

श्री त्रिपाठी जी से भी मैंने इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहा कि ब्लॉग लिखने का क्या फायदा है | इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने इस प्रकार दिया - "लिखने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लिखने के लिए आप एक विषय पर अपनी जानकारियों को सुव्यवस्थित करने की कोशिश करते हैं जिससे अपने विचारों में स्पष्टता आती है | इससे व्यक्तित्व का विकास होता है | विकसित व्यक्तित्व से अच्छे  काम होते हैं | अच्छे कार्य करने में ख़ुशी मिलती है, आनंद मिलता है | जंहा तक ब्लॉग लिखने की बात है तो यह एक बहुत बड़ा मंच है जिस पर लिखकर आप की रचना एक ही क्षण में दुनिया भर के पाठकों तक पहुँच सकती है | ब्लॉग पर किसी भी ढंग से, कुछ भी  लिख सकते हैं जिसे शायद कोई पत्र-पत्रिका न छापे चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो | इसमें आपको पूरी स्वतंत्रता है |

श्री त्रिपाठी जी से मुलाकात के बाद वापस घर आते समय रास्ते भर उनसे हुई बातचीत और विशेषकर  उपरोक्त  प्रश्नोत्तर पर सोचता रहा | और निश्चय किया कि अब ब्लॉग के लिए अधिक से अधिक समय देना है | इस कार्य में बहुत संतुष्टि मिलेगी | 

आज मैंने "इनफ़ोसिस" के संस्थापक श्री एन.आर. नारायणमूर्ति की पेंगुइन बुक्स  से प्रकाशित पुस्तक "बेहतर भारत बेहतर दुनिया" के कुछ पृष्ठ पढ़े | उन पृष्ठों में उन्होंने उन घटनाओं का वर्णन किया है जिन्होनें उनके जीवन की दिशा मोड़ दी | उनमें से एक घटना का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया है कि साल 1968 में जब वह आई.आई.टी. कानपुर में ग्रेजुएशन  के छात्र थे तब उनकी मुलाकात एक मशहूर कम्प्यूटर वैज्ञानिक से हुई, जो एक नामी-गिरामी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से अवकाश पर आये हुए थे | इस मुलाकात ने उन पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि उन्होंने निश्चय  किया कि वह कम्प्यूटर साइंस ही पढ़ेगें | श्री नारायणमूर्ति अन्त में कहते हैं कि इस अनुभव ने उन्हें सिखाया कि कीमती सलाह कभी कभी अप्रत्याशित स्रोंतों  से भी मिल जाया करती हैं और सयोंगवश हुई घटनाएँ कभी-कभी सफलता के नये दरवाजे खोल सकती हैं  |

श्री नारायणमूर्ति की उपरोक्त घटना को पढ़ते हुए बार-बार गत माह श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से हुई मुलाकात की याद आती रही |

2 comments:

  1. sahi kaha he aap ne ki "घटनाएँ कभी-कभी सफलता के नये दरवाजे खोल सकती हैं "

    ReplyDelete
  2. बस, शुरु हो जाईये. सार्थक और नियमित लिखिये. बाकी कहानी तो खुली किताब है, सब समझ आ जायेगा खुद ब खुद. फिर आपको तो सिद्धार्थ जी जैसे जबरदस्त ब्लॉगर का मार्गदर्शन प्राप्त है..सब बेहतरीन रहेगा.

    शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete