देश के सबसे पुराने एवं अति प्रतिष्ठित टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन रतन टाटा पद से सेवा निवृत्त हो गए। इस अवसर पर जब विश्वप्रसिद्ध शख्सियत रतन टाटा से किसी ने पूछा कि आपने अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री को कोई सलाह दी है ? इस पर उन्होंने जवाब दिया ‘‘जब मैं चेयरमैन बना था तो सबने यही पूछा कि क्या आप अपने रोल माडल जे0आर0डी0 टाटा की तरह काम करना चाहेंगे ?’’ मैंने उस समय कहा था, ‘‘मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा। मैं अपने तरीके से काम करूंगा। अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री से भी मैंने यही कहा है कि अपने निर्णय उनको स्वतः ही लेने होगें।’’ उनका आशय था कि वह रतन टाटा की नकल न करें। जो वह हैं वही बने रहकर कार्य करने की भरपूर कोशिश करें।
रतन टाटा गत् दिवस-28 दिसम्बर 2012 को टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन पद से 75 साल की उम्र में सेवा निवृत्त हुए। इस अवसर पर रतन टाटा अपनी उपलब्धियों के लिए मीडिया में काफी छाये रहे। रतन टाटा का उक्त विचार मेरे एक परिचित की समझ में नहीं आया तो उसने मुझसे पूछा -‘‘हमने तो यही पढ़ा और सुना है कि यदि जीवन में सफल होना है तो सफल व्यक्ति की तरह काम करना चाहिए, उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए। परंतु रतन टाटा तो अपने उत्तराधिकारी से कह रहे हैं कि कभी रतन टाटा बनने की कोशिश मत करना। यह विरोधाभास मेरी समझ में नहीं आ रहा है। मैंने उनसे से कहा - ‘‘प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण एवं विशेष प्रतिभा होती है। प्रत्येक व्यक्ति की कोशिश होनी चाहिए कि वह अपने मौलिक गुणों-प्रतिभाओं को पहचाने और उसका भरपूर उपयोग करे। जो ऐसा करते हैं उनमें से ही बड़े उद्योगपति, राजनेता, समाजसेवी, साहित्यकार, खिलाड़ी इत्यादि अपने-अपने कार्य क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं। दूसरों की नकल करने वाले व्यक्ति सतही तौर पर सफलता तो पा लेते हैं परन्तु जीवन में बहुत आगे नहीं बढ़ पाते हैं। बहुत आगे बढ़ने के लिए दिमाग में नये-नये विचार आने चाहिए और वे तभी आते हैं जब आप मौलिक होते हैं, अपने मन की सुनते हैं, उस पर ईमानदारी से अमल करके कुछ नया एवं विशेष करने की सोचते हैं। यदि रतन टाटा अपने वरिष्ठ जे0आर0डी0 टाटा की नकल करने की कोशिश करते तो संभवतः वह इतनी उन्नति नहीं कर पाते।
हर व्यक्ति के सामने अलग-अलग परिस्थितियाँ होती हैं और हर क्षेत्र में उनकी प्रतिभायें भी समान नहीं होती हैं। उन परिस्थितियों और अपनी प्रतिभाओं के अनुसार अपने लिए वह अवसर एवं चुनौतियों को चिन्हित करता है। चुनौतियों से वह जूझता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की समस्या के निदान का रास्ता अलग होता है।
आवश्यक नहीं कि जिस रास्ते पर चलकर किसी सफल व्यक्ति ने समस्याओं का हल निकाला हो, उसी पर चलकर दूसरे व्यक्ति की समस्या भी हल हो जाए। इसलिए प्रत्येक प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने ढंग से सोचता है और अपने लिए रास्ता बनाता है। अपनी समस्याओं को हल करते समय दूसरे सफल लोगों से इस बात की प्रेरणा तो लेनी चाहिए कि जब अमुक व्यक्ति सफल हो सकता है तो मै क्यों नहीं हो सकता हूँ। लेकिन आँखें बंद करके किसी की नकल करने से सफलता हासिल नहीं होती। इसके लिए एक मुहावरा भी है - ‘‘नकल करो मगर अकल से’’। सफल लोगों के नुस्खों को तो ध्यान में रखना चाहिए पर उन रास्तों को नहीं जिन पर चलकर उन्हें सफलता प्राप्त हुई। अपनी समस्या को अपने ही ढंग से निपटाने की कोशिश करने से दिमाग तेजी से चलता है और समस्या या चुनौती बोझ नहीं लगती है। तनाव पैदा नहीं होता है बल्कि समस्या सुलझाने में आनंद आता है और वह नये-नये इतिहास रचता है। यदि रतन टाटा नकल करते तो वे अपने टाटा उद्योग समूह को इतनी बड़ी विश्वव्यापी तरक्की नहीं दिला पाते। उन्होंने अपने 21 साल के मुखिया कार्यकाल में टाटा उद्योग समूह को बहुत आगे बढ़ाया जो अपने आप में मिसाल है। अतः मिसाल कायम करने के लिए अपना रास्ता स्वयं बनाना होता है।
इस समय दो परिचितों के चेहरे मेरे सामने घूम रहे हैं। जो बुद्धि में तेज हैं, खूब मेहनती हैं और दोनों एक ही संस्थान में कार्यरत हैं लेकिन उनकी उन्नतियों में जमीन आसमान का अन्तर हो गया है। जो युवक उन्नति की सीढि़याँ तेजी से चढ़ रहे हैं वह स्थिर रह जाने वाले से उम्र में काफी छोटे हैं। और उस संस्थान में बाद में आये हैं। बाद में आने वाले युवक सबसे आगे निकल गये। जो हैसियत इस युवक ने संस्थान में बनाई दूसरे व्यक्ति उनसे भी आगे जा सकते थे। दोनों में अन्तर यही है कि उन्नति करने वाले युवक किसी की नकल नहीं कर रहे हैं। उनका ध्यान केवल अधिक से अधिक मेहनत करके और विभिन्न समस्याओं का अपने ढंग से निदान करके नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने पर है।
जो स्थिर रह गये वह हमेशा उस व्यक्ति की नकल करने की कोशिश करते रहे जो उन्हें थोड़ा भी सफल दिखायी दिया लेकिन वह कुछ ही समय में उससे ऊब जाते और फिर किसी दूसरे सफल व्यक्ति की नकल करने लगते। मैं देख रहा हूँ कि जो स्थिति उनकी शुरू में थी अब भी वही है और बाद में वह हतोत्साहित भी हो गये।
मुझे पूरा विश्वास है कि यदि यह व्यक्ति विभिन्न सफल व्यक्तियों की नकल करने की अपेक्षा अपने गुणों को पहचानते और उनका भरपूर उपयोग करने के लिए कड़ी मेहनत करते तो निश्चित रूप से चमत्कारिक उपलब्धियाँ हासिल करते और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनते।
यह व्यक्ति ही क्यों कोई भी वह व्यक्ति अकल्पनीय कामयाबी हासिल कर सकता है और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकता है जो अपने गुणों और प्रतिभाओं को पहचान कर उनका उपयोग करने के लिए भरपूर मेहनत करें।
अपने मौलिक गुणों एवं प्रतिभाओं का उपयोग करके सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचने वालो में देश की प्रमुख हस्तियां - राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, शहीदे आजम़ सरदार भगत सिंह, महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस, महान साहित्यकार रविन्द्रनाथ टैगौर, महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन, नोबल पुरस्कार विजेता महान समाज सेवी मदर टेरेसा, महान उद्योगपति भारत रत्न जे0आर0डी0 टाटा, मिसाइल मैन एवं पूर्व राष्ट्रपति ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम, दुग्ध क्रान्ति के जनक वर्गीज कूरियन, मैट्रोमैन ई0 श्रीधरन, विश्वविख्यात सितार वादक पं0 रविशंकर, क्रिकेट का भगवान माने जाने वाले खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, महान पाश्र्व गायिका लतामंगेशकर, फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन इत्यादि हैं । यह सूची और भी लम्बी बन सकती है लेकिन यहाँ पूरी सूची बनाना आवश्यक नहीं है। इन सभी महान हस्तियों ने सफलता पाने के अलग-अलग रास्ते अपनाए व विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
इसीलिए रतन टाटा ने अपने उत्तराधिकारी को सलाह दी कि वह रतन टाटा बनने की अपेक्षा अपने मौलिक गुणों एवं प्रतिभाओं के अनुसार काम करें, ऐसा करेंगे तो वह रतन टाटा से भी आगे जा सकते हैं। यानि साइरस मिस्त्री, साइरस मिस्त्री बनकर ही रतन टाटा की कामयाबियों से भी आगे जा सकते हैं। यदि साइरस मिस्त्री रतन टाटा बनने की कोशिश करेंगे तो वह न रतन टाटा बन पाएंगे और न ही साइरस मिस्त्री रहेंगे।
ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम प्रोफेसर यशपाल
इस विचार को एक दूसरे अन्दाज़ में एक विश्वविद्यालय में भारतरत्न ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम की उपस्थिति में उनके गुरू प्रोफेसर यशपाल ने सफलता का गुरूमंत्र देते हुए विद्यार्थियों से कहा है-
‘‘कलाम नहीं, कमाल के बनो’’।
Impeccable summarization sir!...I confess that I have read and also written on this topic, but could not reach to such a fine conclusion of thoughts of the great man. You have always impressed me with your analysis which comes from deep thinking and experience. You also stand out on what you wrote with a completely unique style of presentation, simple yet an instant connect…!...carry on with the good work as there is lot to learn from you…!
ReplyDeleteAnirudha
अनंत जी आपके लेखन की सरलता मुझे बहुत पसंद है । रतन टाटा के इस छोटे और महत्वपूर्ण वाक्य को आपने बहुत सरलता से प्रस्तुत किया है । इस कथन से मुझे एक मुहावरा याद आ गया -
ReplyDelete" विजेता नए कार्य नहीं करते परंतु पुराने कार्यों को ही नए तरीकों से करते है । "
मै भी इसी कथन को मानता हूँ और पूर्ण रूप से पालन करने का प्रयास भी करता हूँ । आपके इस लेख से मुझे और प्रोत्साहन मिला है । कृप्या इसी तरह से हम लोगो का मार्ग दर्शन करते रहें ।
Ya exactly Mr. Harsh i also like too much written thoughts of ANANT ANVESHI. And if we are talking about TATA then he is a biggest field of research. And this research may be technological, sociological, managerial etc. Ya the sentence said by Ratan Tata is really very true. If yuth start their goal achieving mission with this saying then i am sure India will became again WORLD GURU
ReplyDeleteSir,u wrote the truth that i liked most....if u want success in your life u should act like a successful person because its develop a confidence in our self. Every person have different and special quality to make their own identity in this world so after reading this article i feel that Believe in myself.
ReplyDeleteNice write up sir....
Its true that every individual is unique and complete. Although the first word, first step of a child is a copy of his or her parent but at the end of the day the identity of that child is based on his or her own steps. He/she has to find his/her own destiny.
ReplyDeleteHere the real truth and philosophy comes!!!!!!! everybody has its own way of dealing with the problem and that is the right way..... Great idea is narrated by you and I think that this will be a torch through which the youngsters who are trying to copy others, will stop copying and trying to find insights to solve the problems.
ReplyDeleteSir, you have provided a incredible insight to a legends teaching...
ReplyDeleteकाश "रतन टाटा" से कुछ सीख हमारे नेता और औघौगिक घराने लेते और योग्य को ही वारिस बनाते, तो देश कि तश्वीर और तकदीर बदलने मे वक्त नही लगता! उपरोक्त लेख के सन्दर्भ मे कुछ प्रेरणामूलक वाक्य इस प्रकार है:
ReplyDelete१) सपने वे नहीं होते जो सोते समय आते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं जो आपको सोने नहीं देते, फिर आप बेचैन हो जाते हैं, उन सपनों को पूरा करने के लिये!
२) किस्मत में लिखी हर मुश्किल टल जाती है! यदि हो बुलन्द हौशले तो मन्जिल मिल ही जाती है !! सिर उठाकर आसमान को देखोगे यदि बार-बार! तो गगन को छुने की प्रेरणा मिल ही जाती है!!
३) जो खुद को लगाते हैं दांव पर, वे पा लेते हैं सब कुछ! जो बचा के चलते हैं खुद को, वो खो देते हैं सब कुछ!!
जिस प्रकार रतन टाटा ने अनेक मुश्किल लम्हों (सिन्गुर काण्ड व नीरा राडिया टेप काण्ड) में अपने धैर्य का परिचय दिया, उससे उनके महान व्यक्तित्व का पता चलता हैं! दुनिया में अब तक जितने भी बडे लोग हुए हैं वे सब भाग्य से नहीं, बल्कि अपनी कोशिश और संघर्ष से बडे बने हैं!
रतन टाटा ने इस देश में एक नयी परम्परा कि शुरुवात की है, देखतें हैं इसका कितना असर पडता हैं!
A massage form a practical winner personality for youngsters who are trying to copy others for success in a day. It is true that every person is winner in his own field.
ReplyDelete‘‘रतन टाटा की रतन टाटा न बनने की सलाह के मायने‘‘ लेख पढ़ा। अनन्त अन्वेषी को विषय और अपने विचारों को प्रभावी ढंग से सफलतापूर्वक प्रस्तुत करने की बधाईं। आपने एक ऐसे विषय पर लेख लिखा है जो एक जागरूक एवं प्रगति-उत्सुक मनुष्य को आत्म-चिन्तन की ओर अग्रसर करता है।
ReplyDeleteमैं स्वयं मोटे तौर पर अनन्त अन्वेषी जी से सहमत हूँ पर बार-बार सोचने पर लगता है कि मेरे विचार पूर्ण रूप से उस लेख में व्यक्त विचारों से मेल नहीं खाते हैं। काफी दूर साथ-साथ चलने के बाद, एक कुछ अलग रास्ता नजर आने लगता है।
मूल लेख से ऐसा लगता है कि किसी सफल व्यक्ति की नकल करना प्रतिभाशाली लोगों का काम नहीं है। उनको अपना रास्ता स्वयं ही बनाना चाहिए।
मैं सोचता हूँ कि क्या पहले जैसी परिस्थितियों की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती और अगर ऐसा हो जाये, तो क्या हमें अपने पूर्वज या वरिष्ठ के उन्हीं दशाओं में निकाले गये समाधान से सिर्फ इसलिए परहेज करना चाहिए कि हमें कुछ नया करना ही है। एक प्रोवेन या सिद्ध समाधान की अनदेखी करना, सिर्फ इसलिए कि यह दूसरे का निकाला हुआ है, मुझे उचित नही प्रतीत होता है।
हमें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए न तो अपने गुरूजनों या पूर्व पदाधिकारियों के समस्याओं के निपटाने के ढंग को आंख बन्द करके अनुसरण करना चाहिए और न उससे पूर्णतः विरक्ति दिखानी चाहिये, मात्र इसलिये कि हमें कुछ नया करना ही है। बड़े-बड़े न्यायालयों में भी पुराने समतुल्य केसों में लिये गये फैसलों को नजीर के तौर पर पेश किया जाता है।
आवश्यकता ऐसे सोच की है कि किन परिस्थितियों में हमें क्या करना है। आवश्यकता है समस्या के शीघ्र निदान निकालने की क्षमता की। देरी से दिया समाधान, चाहे सही भी हो, अपना महत्व खो देता है। समस्या एक दीमक की तरह है। दीमक जब हमें दिखाई देती है उससे पहले ही उसने लकड़ी को खाना आरम्भ कर दिया होता है, समाधान जितनी देरी से निकालेंगे क्षति उतनी ही बढ़ती जाती है। देरी से दिया समाधान लकड़ी को दीमक के खा लेने के बाद लकड़ी में दीमक का तेल लगाने जैसा है। देरी से दिया समाधान, समाधान न देने के बराबर है। समाधान निकालना तो महत्वूपर्ण है ही पर उससे अधिक महत्वपूर्ण है समाधान निकालने में लगने वाला समय।
आवश्यकता इस बात की है अगर संगठन में कोई समस्या आये तो संगठन मुखिया को अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करके यथाशीघ्र समाधान निकालने की। अगर पहले ऐसी ही समस्या आ चुकी हो तो उसमें क्या किया गया था, उसको विचार में रखकर के और अगर पहले वैसी समस्या न आयी हो तो अपने ग्यान विवेक और तजुर्बे के आधार पर एक नया समाधान देने की। जो मुखिया समस्या से होने वाली क्षति से संगठन को बचा सकता है उसे ही एक सफल मुखिया कह सकते हैं।
डी. पी. अग्निहोत्री