सत्य की खोज में

Friday, July 9, 2010

कार्टूनिस्ट व लेखक आबिद सुरती का सम्मान एवं गाँव जोकहरा का एक अदूभुत पुस्तकालय

बहुमुखी सर्जक आबिद सुरती का गत दिनों मुंबई में उनके 75 वें जन्मदिन पर सम्मान हुआ | इस अवसर पर हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में साहित्यिक पत्रिका 'शब्दयोग' के आबिद सुरती केन्द्रित अंक (जून 2010) का लोकार्पण हुआ एवं एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया |

इस अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान करते हुए समाजसेवी संस्था 'योगदान'के सचिव आर. के. पालीवाल  ने आबिद सुरती की पानी-बचाओ मुहिम के लिए दस  हजार रूपए का चेक भेंट किया | सम्मान स्वरुप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन यानि बरमूडा और रंगीन टी-शर्ट भेंट किया गया | कार्यक्रम की शुरूआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता 'आबिद और मैं' का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया | सुप्रसिद्ध  व्यंगकार  शरद जोशी  की एक चर्चित रचना  'मैं आबिद और ब्लैक आउट' का पाठ उनकी सुपुत्री व सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने अपने पिता के ही अन्दाज में प्रस्तुत किया | संचालक देवमणि पाण्डेय ने निदा फाजली के एक शेर के हवाले से आबिद जी के बहुमुखी व्यक्तित्व का परिचय दिया -

" हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी  
  जिसको भी देखना हो कई बार देखना "


समाजसेवी संस्था 'योगदान' की त्रैमासिक पत्रिका 'शब्दयोग' के इस विशेषांक का परिचय कराते  हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर.के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती एक ऐसे विरल कथाकार व कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से हिन्दी और गुजराती साहित्य को पिछले दशकों से निरंतर समृद्ध किया है | कथाकार व व्यंगकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है,  फिल्म लेखन किया है और गजल विधा में भी हाथ आजमाए हैं | 'धर्मयुग' जैसी पत्रिका में 30 साल तक लगातार 'कार्टून कोना ढब्बूजी' पेश करके उन्होंने एक रिकार्ड ही बनाया है | इसलिए इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता में प्रस्तुत करने के लिए उनके सभी पक्षों का समायोजन जरुरी था |


श्रोताओं   के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे | इसलिए मैं सन्देश और उपदेश नहीं देता | आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता | मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है | भविष्य में जो लिखूंगा, अपनी प्रतिबद्धता के साथ ही लिखूंगा | इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों व प्रशंसकों के अलावा मुंबई के साहित्य जगत से काफी संख्या में लोग उपस्थित रहे |





गाँव जोकहरा के पुस्तकालय में आबिद सुरती ने सिखाया बच्चों को कार्टून बनाना -

श्री आबिद से लगभग पांच वर्ष पूर्व मेरी मुलाकात हुई थी | वह उस समय आजमगढ़ (उ. प्र. ) के गाँव जोकहरा स्थित श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय में आयोजित एक राष्ट्रीय साहित्यिक संगोष्ठी में शामिल  होने आये थे | संयोगवश मैं भी संगोष्ठी में उपस्थित था | 

देश के कोने-कोने से साहित्यकार आये  थे | बहुत से साहित्यकार एक दुसरे से अपरचित थे | मैं भी श्री आबिद को नहीं जानता था |

किन्हीं कारणों से संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र प्रारंभ होने में कुछ विलम्ब हो रहा था | पुस्तकालय के संस्थापक एवं संगोष्ठी के मुख्य सूत्रधार  विभूति नारायण राय ने सोचा  कि क्यों न इस विलम्ब का लाभ उठाया जाए | उन्होंने श्री आबिद से आग्रह किया कि वे कुछ समय गाँव के बच्चों को कार्टून बनाना सिखा दें | श्री आबिद की स्वीकृति मिलने पर आनन-फानन में बच्चों को एकत्र किया गया |

एक कमरे में उनको बैठाया गया | ब्लैक  बोर्ड नहीं था तो क्या हुआ कमरे के दरवाजे ने बोर्ड का स्थान ले लिया | श्री आबिद ने बच्चों को जिस अन्दाज में कार्टून बनाना सिखाया उसे देख वहाँ उपस्थित सभी लोग अचम्भित हुए | किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि देश-विदेश  में विख्यात, मुंबई निवासी सत्तर वर्षीय श्री आबिद इतनी  सरलता व सहजता से गाँव के बच्चों में बच्चे बनकर कार्टून सिखायेंगे | वह लौकी, बैंगन, आलू, केला आदि सब्जी-फल बनाकर उनको आपस में जोड़ते हुए कुछ आड़ी तिरछी लाइन खींचकर बच्चों के लिए बड़े ही रोचक कार्टून तैयार कर देते | लगभग आधे  घंटे बाद जब उन्होंने बच्चों से कार्टून बनाने को  कहा तो कई बच्चों ने बहुत ही उम्दा कार्टून बनाये | इस दौरान उन्होंने बच्चों का खूब मनोरंजन भी किया | एक घंटे की इस छोटी सी कार्यशाला ने सिद्ध कर दिया कि श्री आबिद एक अच्छे कार्टूनिस्ट व साहित्यकार ही  नहीं,  एक अच्छे शिक्षक भी हैं |
(आबिद सुरती के बारे में अन्य जानकारी  aabidsurti.in  पर प्राप्त की जा सकती हैं) 



                                              प्रसंगवश                                          

लोगों के जीवन को समग्रता में बदल रहा है गाँव जोकहरा का श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय
इस पुस्तकालय ने ऐसा आकार ग्रहण कर लिया है जिससे गाँव जोकहरा ही नहीं बल्कि आस-पास के बहुत से गाँवों के लोगों का जीवन समग्रता में बदल रहा है | क्योंकि  पुस्तकालय केवल पुस्तकों को पढ़वाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि  यह पुस्तकालय पूरे प्रदेश में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है | हिन्दी साहित्य का शायद ही कोई प्रतिष्ठित और नामी लेखक  होगा  जिसने इस पुस्तकालय परिसर में होने वाली संगोष्ठियों में शिरकत न की हो | इनमें डा. नामवर सिंह, श्री लाल शुक्ल, (स्व.) कमलेश्वर, से.रा. यात्री, नीलकंठ, रविन्द्र कालिया, ममता कालिया चित्रा मुद्गल, नासिरा शर्मा, रमणिका गुप्ता, नमिता सिंह, नीलाभ, भारत भारद्वाज, विकास नारायण राय आदि हैं | इसके अलावा इस पुस्तकालय में प्रख्यात फिल्म अभिनेत्री,  सांसद  एवं  एक्टिविस्ट   सुश्री  शबाना आजमी, वृन्दा करांत, मेधा पाटकर, पदमश्री विभूषित पाण्डवानी, गायिका  एवं  नृत्यांगना  तीजन  बाई,  महान  कार्टूनिस्ट  आबिद सुरती, पर्यावरणविद फोटोग्राफर सुश्री सर्वेश, मानवाधिकारों पर काम करने वाली रूपरेखा वर्मा, तिस्ता सीतलवाड़ , असगर अली इंजीनियर, सुभाषिनी अली, संघप्रिय गौतम आदि हस्तियों का भी पदार्पण हो चुका है |


साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों  के अलावा पुस्तकालय के भीतर  रोजगारोन्मुख  कई  गतिविधियाँ चल रही हैं | सिलाई- कढ़ाई, टंकण कार्य, कम्प्यूटर शिक्षा और अन्य प्रशिक्षणों के माध्यम से युवक-युवतियों के लिए रोजगार की नई खिड़कियाँ खुल रही हैं | फिल्म सोसायटी के जरिये  यहाँ बेहतरीन एवं दुर्लभ हिन्दी फ़िल्में  भी दिखाई  जाती हैं |        

यहाँ रास्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली, भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद आदि कई नामचीन संस्थाओं एवं रंगकर्मियों ने कई नाट्य कार्यशालाएं आयोजित की हैं | इनके माध्यम से जोकहरा व आस-पास के गाँवों के युवाओं  व बच्चों ने अनेक नाटकों का सफल मंचन किया है | पिछले सात वर्षों में यहाँ के बच्चों एवं युवा कलाकारों ने जोकहरा सहित, लखनऊ, इलाहाबाद, चंडीगढ़ एवं दिल्ली के अलावा अनेक स्थानों पर सफल प्रस्तुतियां की हैं |

इसके अतिरिक्त यहाँ एक लघु पत्रिका केंद्र भी है जिसमें हिन्दी की 200 से अधिक लघु पत्रिकाओं के अंक सुरक्षित हैं | पुस्तकालय नवयुवकों के लिए एक वालीबाल नर्सरी भी  चलाता है |

अब तो यहाँ महिला उत्पीड़न की समस्याओं पर सुनवाई भी होने लगी है | पुस्तकालय उनके अधिकारों की भी लड़ाई लड़ता है| यहाँ और भी कई ऐसी गतिविधियाँ संचालित हैं जो लोगों के जीवन को हर प्रकार से बेहतर बनाने का कार्य कर रही हैं |


जोकहरा में इस पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1993 में विभूति नारायण राय ने की | चर्चित साहित्यकार विभूति नारायण राय इस गाँव के मूल निवासी हैं तथा उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रह चुके हैं | वर्तमान में महात्मा गाँधी अंतररास्ट्रीय  हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा (महाराष्ट्र) के कुलपति हैं |

आज विशालकाय  भवन में सभी आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण इस पुस्तकालय का प्रारंभ गाँव के एक विद्यालय के एक कमरे में हुआ था | पुस्तकालय लोगों के लिए सुबह छह बजे से रात के आठ बजे तक खुला रहता है | लोग वहाँ बैठकर समाचार पत्र व पत्रिकाएं पढतें हैं और मन  पसंद पुस्तक घर पर पढने के लिए ले जाते हैं | 

सत्रह वर्ष पूर्व जिस समय इस पुस्तकालय की स्थापना की गयी थी उस समय जोकहरा भी पूर्वांचल के अन्य गाँवों की तरह जातिगत व्यस्था एवं सांस्कृतिक दरिद्रता से ग्रस्त था | दलित बाहुल्य इस छोटे  से गाँव में दलितों के अतिरिक्त ठाकुर, ब्राह्मण, यादव एवं भूमिहार भी हैं | ठाकुरों, ब्राह्मणों और भूमिहारों के  छुआछूत और जातिवाद के कोड़ों से दलित समुदाय लहूलुहान था | अब यहाँ नई चेतना और आत्मविश्वास  की बयार से इनका परिदृश्य बदल रहा है | पुस्तकालय की प्रमुख गतिविधियों में अनेक दलित युवक-युवतियां खासे सक्रिय हैं और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सम्भाल रहे हैं | पुस्तकालय के संस्थापक विभूति नारायण राय को गाँव के दलित अपना मसीहा मानते हैं | दलित ही नहीं विभिन्न वर्गों के ऐसे बहुत से पीड़ित लोग हैं जिनके जीवन को उन्होंने संवारा है, सहारा दिया है | उनमें से एक सुधीर शर्मा भी हैं | सुधीर शर्मा इस पुस्तकालय के एक प्रमुख स्तम्भ हैं जो कभी नशाखोरी के अपराध में गोवा की जेल में दस वर्ष की सजा भुगत चुके हैं |

पुस्तकालय के बारे में अन्य विवरण  srsp1993.blogspot.com  तथा   sriramanandsaraswatipustkalaya.blogspot.com पर प्राप्त किया जा सकता है |

Sunday, July 4, 2010

अहम् भूमिका होती है प्रविष्टियों पर टिप्पणियों की

प्रविष्टियों पर टिप्पणियों की भूमिका बड़ी अहम् होती है | रचनात्मक टिप्पणियां  तो 
लेखक पर विशेष छाप छोडती हैं, साधारण टिप्पणियों का  भी प्रभाव पड़ता है | यदि 
लेखक को उसकी रचना पर कोई टिप्पणी  नहीं मिलती तो वह छटपटाता है | उसके
मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं- क्या पाठक को रचना अच्छी  नहीं  लगी,
उसमें क्या कमी रह गयी.....इत्यादि |

ब्लॉग  पर मेरी  पहली प्रविष्टि 28 मार्च 2010 को  प्रकाशित  हुई | अभी तक मैं कुल
आठ प्रविष्टि  ही ब्लॉग पर प्रकाशित कर सका  |

मैंने जब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया था उस समय मुझे यह भी नहीं पता 
था की ब्लॉग की  रचनाओं पर टिप्पणियां भी होती  हैं | सौभाग्य से पहली  
प्रविष्टि ही ब्लागवाणी पर हिट हुई अर्थात उस दिन वह  प्रविष्टि सबसे ज्यादा 
पढ़ी गयी | इसके बाद की प्रविष्टियाँ भी खूब सराही गयीं  और काफी  टिप्पणियां 
मिलीं |  कभी कभी तो प्रविष्टि के प्रकाशित होने के 10 मिनट बाद ही टिप्पणी
मिल गयी |

इन टिप्पणियों का मुझ पर यह असर हुआ की प्रविष्टि  को अब तो ब्लॉग पर
प्रकाशित करने के बाद  ही टिप्पणियों की प्रतीक्षा करता हूँ | टिप्पणियां देर से या 
कम आने पर छटपटाहट  होती है  | सबसे ज्यादा  छटपटाहट -16   जून  2010 
की नवीनतम प्रविष्टी "डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लायन  पुष्पा स्वरुप  से  विशेष मुलाकात" 
को ही  लीजिये | प्रविष्टि प्रकाशित होने के 24 घंटे  तक केवल एक टिप्पणी मिली |
इस अन्तराल  में काफी छटपटाहट रही | इसको लेकर मन में तरह-तरह के सवाल
उठे | साथियों से इस पर चर्चा की | एक साथी ने कहा - इंटरव्यू कुछ लम्बा हो
गया हो इसलिए पढ़ा ही न गया हो | दूसरे साथी ने कहा- चूँकि यह इंटरव्यू
लायन्स क्लब के एक बड़े पदाधिकारी का था और बहुत से लोग इन क्लबों  को कोई
अच्छी नजर से  नहीं देखते, शायद  इसलिए न  पढ़ा गया हो,  आदि-आदि |

मैंने साथियों को अपनी सोच से अवगत कराया | "यह इंटरव्यू   विशेष मुलाकात के
रूप में  था | इसलिए बड़ा था | इसमे  विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करके उस 
सख्शियत  से अधिकतम विचार लेने  की कोशिश  की जाती है |  जहाँ  तक
'लायन्स क्लब'  की बात है तो 'लायन्स क्लब' का गुणगान करने की कोशिश मैंने 
नहीं की |'लायन्स क्लब' तो केवल माध्यम था | गुणगान तो एक महिला के उस
संघर्ष का था  जिससे वह सशक्त बन रही है और दूसरी महिलाओं को भी सशक्त
बनाते हुए समाज के लिए  काम कर रही है | उद्देश्य यह भी था कि  अन्य
महिलाएं सशक्त बनने के लिए, कुछ करने के लिए प्रेरणा  ले सकें|

यह  चर्चा चल ही रही थी कि एक साथी ने कहा "ई-मेल खोलकर  देखो शायद
अब कोई टिप्पणी आ गयी हो |" देखा कि  'चर्चा मंच' की संयोजिका सुश्री अनामिका 
का  एक सन्देश  था  - "डिस्ट्रिक्ट गवर्नर  लायन पुष्पा स्वरुप  से विशेष  मुलाकात"
को 'चर्चा मंच' में 18 जून 2010 (प्रवष्टि प्रकाशित  - 16 जून 2010) को सजाया
जायेगा |  इसको  पढ़कर सभी साथी ख़ुशी से  उछल पड़े | उस दिन  का इंतजार
करने लगे  |

अगले  दिन  (18 जून) जब  'चर्चा मंच' को  देखा गया तो पता चला की  "चर्चा मंच"
पर कुल 18 प्रविष्टियों   को सजाया गया है जिसमे अपनी प्रविष्टि  छठे क्रम पर
थी |   देखकर बड़ी ख़ुशी हुई |

ऐसी  ख़ुशी तब भी  हुई थी जब 'चिठ्ठा जगत' के संयोजक  श्री अनूप शुक्ल ने  "महिला. 
आई.ए.एस. टापर इवा  सहाय से विशेष मुलाकात" को चिठ्ठा चर्चा के लिए चुना
और उसे बहुत ही सुन्दर ढंग से 'चिठ्ठा जगत' पर प्रकाशित किया | 

आम तौर पर  चर्चाओं से बहुत ख़ुशी मिलती  है, लेकिन एक टिप्पणी ऐसी मिली 
जिसने ख़ुशी के साथ मार्गदर्शन भी  किया | प्रविष्ट "मैं और मेरा शौक" पर कनाडा से
'उड़न तस्तरी' के श्री समीर लाल की  टिप्पणी "अच्छा और खूब  पढना  ही अच्छा  
लेखन लेकर आयगा  ... जारी रहें'  ने  बहुत  प्रेरित किया | यह  मुझे लगभग प्रत्येक 
दिन याद आती हैं  और कुछ अच्छा पढने  के लिए प्रेरित करती है| इसी प्रेरणा के
चलते कुछ न कुछ  पढ़ लेता हूँ और मन में श्री समीरलाल जी को नमन करता हूँ  |

प्रविष्टि  "स्टार एंकर  हंट पर  विशेष  रपट"  पर चित्तौड़गढ़   (राजस्थान) से 
'अपनी माटी' के श्री मणिक  जी की टिप्पणी  उस समय बहुत सांत्वना देती है जब
किसी प्रविष्टी पर टिप्पणियाँ कम आती हैं  या नहीं  आती हैं |  श्री मणिक जी की 
टिप्पणी थी  - "आपके ब्लॉग पर आकर कुछ तसल्ली हुई |  ठीक लिखते  हैं  | सफर
जारी  रखें | पूरी तबियत के साथ लिखते रहें| टिप्पणियों का  इंतजार न करें | वे
आएँगी तो अच्छा  है नहीं भी आया तो क्या| हमारा लिखा कभी तो रंग लायेगा |
वैसे भी साहित्य अपने मन  की ख़ुशी के लिए भी होता  रहा है | "

अन्त  में,  मैं उन सभी  भाई-बहनों का  हार्दिक  आभार  प्रकट करता हूँ , धन्यवाद  
करता हूँ जिन्होनें  मेरी   प्रविष्ठियाँ पढ़ीं, उन पर टिप्पणियां दीं, उन्हें विशेष महत्व 
देकर अन्य लोगों को पढवाने के लिए प्रेरित किया | इनसे मेरा उत्साहवर्धन हुआ है,
मुझे मार्गदर्शन मिला है |

प्रविष्टियों पर टिप्पणियों के महत्व को जानते-समझते हुए भी मैं अपने ब्लागर
भाई-बहनों को उनकी प्रविष्टियों पर अभी टिप्पणियां नहीं भेज पा रहा हूँ | इसके
पीछे मेरी कुछ 'विकलांगताएँ' हैं | मैं  इन  'विकलांगताओं'  को दूर करने की कोशिश में
हूँ,  जैसे ही ये सीमाएं दूर होंगी वैसे ही मैं  भी अपनी टिप्पणियां देनी शुरू करूंगा | तब
तक के लिए क्षमा प्रार्थी  हूँ | आशा है अपना  स्नेह  बनाये रखेंगे | 
     
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