सत्य की खोज में

Sunday, February 17, 2013

प्रौढ़ अवस्था में पहना हेलमेट



प्रायः समाचार पत्रों में हम पढ़ते रहते हैं कि आज फिर एक दुपहिया वाहन चालक की सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी, यदि उसने हेलमेट पहना होता तो उसकी मौत न होती। आखिर क्या कारण है कि इस प्रकार के समाचारों का भी हम पर असर नहीं होता जबकि हेलमेट पहनकर दुपहिया वाहन चलाने के लिए सरकार ने भी नियम-कानून बना रखे हैं और इसे लागू कराने के लिए समय-समय पर  ट्रैफिक पुलिस चैकिंग अभियान भी चलाती रहती है।
 

इस प्रकार के हादसों एवं चैकिंग अभियानों के बावजूद देश में अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो हेलमेट पहने बिना दुपहिया वाहन चलाते हैं। शायद ऐसे लोग यह सोचते हैं कि वे तो ठहरे आजाद देश के आजाद नागरिक। उनकी शान तो तभी है जब दूसरे लोग तो नियम-कानून का पालन करें और वे अपनी मनमानी करें, उनसे कोई कुछ न कहे। हेलमेट नहीं पहनना है तो नहीं पहनना है, बस चाहे कुछ भी हो जाए।

जिन्हें  अपनी सुरक्षा की चिन्ता नहीं रहती और जो सरकार के नियमों को भी ताक पर रख कर चलते हैं ,ऐसे लापरवाह लोग भी हेलमेट पहनना शुरू कर देते हैं जब वे इस प्रकार के किसी हादसे को अपनी आँखों से देख लेते हैं या उन्हें कोई इसका महत्व प्रभावी ढंग से समझा देता है अथवा उन पर इसके लिए कोई सख्ती की जाती है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक घटना ने मुझे प्रौढ़ अवस्था में हेलमेट पहना दिया। मुझे ही नहीं बल्कि शिक्षण संस्थाओं के एक ग्रुप  के सभी विद्यार्थियों एवं कर्मचारियों को पहना दिया।

    मैं एक निजी इन्जीनियरिंग कालेज में कार्यरत हूँ। इस कालिज में बी0टेक0 प्रथमवर्ष में पढ़ने वाली एक होनहार छात्रा की गत माह सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। यह दुर्घटना घर से कालेज आते समय हुई। उस समय वह अपनी स्कूटी चला रही थी। एक बस से टक्कर लगते ही वह ऐसी गिरी कि उसके सिर के पास से बहुत तेजी से खून बहने लगा और चंद मिनटों में उसकी मौत हो गयी। इस दर्दनाक हादसे को जिसने भी देखा या जिसे भी इसकी पूरी जानकारी मिली वह एक बार को स्तब्ध रह गया। सभी का मानना है कि यदि उसने हेलमेट पहना होता हो उसकी मौत न होती।


    इस हादसे से कुछ सबक लेते हुए कालेज प्रशासन ने निर्णय लिया कि अब कालेज में हेलमेट पहनना सभी दुपहिया वाहन चलाकर आने वालों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए। इसके लिए एक मीटिंग बुलाकर कालेज के पूरे स्टाफ से कह दिया गया कि अब पूरा स्टाफ भी हेलमेट पहनकर आयेगा। नैतिकता की बात करते हुए कहा गया कि यदि स्टाफ ही हेलमेट पहने बिना दुपहिया वाहन चलाकर कालेज आऐगा तो हम लोग कैसे विद्यार्थियों के लिए इसे अनिवार्य करेंगे।

    इस मीटिंग के बाद कालेज के सभी छात्र-छात्राओं को स्पष्ट कर दिया गया कि अब ऐसे विद्यार्थियों से कड़ाई से निपटा जायेगा जो हेलमेट पहने बिना दुपहिया वाहन चलाकर कालेज परिसर में आएंगे।

 इस पहल का सकारात्मक एवं चमत्कारिक परिणाम देखने में आया कि एक सप्ताह के अन्दर यह स्थिति आ गयी कि अब एक भी व्यक्ति ऐसा नजर नहीं आता जो बिना हेलमेट पहने दुपहिया वाहन चलाकर कालेज परिसर में आता हो। वह चाहे
स्टाफ हो या विद्यार्थी, पुरूष हो या महिला अथवा प्रौढ़।

    मुख्य प्रशासनिक अधिकारी से जब हेलमेट पहनने के मामले में मिली शतप्रतिशत सफलता का रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि ऐसा कोई काम नहीं जिसे पूरा करने की कोई व्यक्ति ठान ले और वह पूरा न हो। उन्होंने कहा कि इसके लिए व्यक्ति को पहले अपने प्रति ईमानदार होना पड़ता है। आप जो दूसरों से इच्छा रखते हैं पहले व्यक्ति को खुद अपनाना होगा।

    ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली ऐसी संस्था है जहाँ अब शतप्रतिशत लोग हेलमेट पहनते हैं। इससे पहले भी ऐसे प्रयोग हुए हैं लेकिन उनकी संख्या अभी नगण्य है। यदि सभी संस्थाए दृढ़ इच्छा के साथ इस प्रकार की पहल शुरू कर दे तो जो काम सरकार नियम-कानून बनाकर भी नहीं पूरा कर पा रही है उसे व्यापक स्तर पर सामाजिक स्तर से पूरा किया जा सकता है।


    इस घटना ने मुझे भी हेलमेट पहना दिया। प्रौढ़ अवस्था होने के कारण शुरू में तो हेलमेट पहनना बड़ा अजीब लगा लेकिन जब इसे पहनकर चला तो इतना सुखद लगा कि अब मैं हर किसी मिलने वाले व्यक्ति  से हेलमेट पहनने के फायदे गिनाता हूँ और पछताता हूँ कि मुझे यह समझ पहले क्यों नहीं हुई।


मैं जब हेलमेट पहनकर दुपहिया वाहन से घर से चला तो कुछ ही क्षणों में सुखद अहसास होने लगा। सबसे पहले तो ऐसा लगा कि इसे पहनकर चलने से मैं कुछ विशिष्ट तथा पूरी तरह से सुरक्षित हो गया हूँ। अब वे लोग जो हेलमेट पहने बिना दुपहिया वाहन चला रहे थे अजीब लगने लगे। अब ऐसा लग रहा था कि एक तरफ मैं कितना सभ्य नागरिक हूँ जो नियम-कानून का पालन कर रहा हूँ और मुझे अपनी सुरक्षा की चिंता है, दूसरी तरफ ये लोग हैं जिन्हें न नियम-कानूनों की परवाह है और न अपनी जान की।

इसके अलावा हेलमेट पहनकर दुपहिया वाहन चलाने वालों का कहना है कि इससे अपने जीवन की सुरक्षा तो है ही, साथ ही इसे पहनने से आस-पास का शोर नहीं सुनायी देता है जिससे कन्सन्ट्रेशन बना रहता है। यदि आप आँखों पर चश्में का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो आँखों का धूल-मिट्टी  व कीट-पतंगों से बचाव होता है। एक लाभ यह भी रहता है कि यदि रास्ते में किसी भी मामले को लेकर पुलिस का चेंकिग अभियान चल रहा हो तो प्रायः पुलिस हेलमेट पहनकर चलने वाले को नहीं रोकती। इसके पीछे पुलिस का मानना रहता है कि यह व्यक्ति नियम-कानून
का पालन करने वाला सभ्य नागरिक है।

    अब इस प्रकार की जनचेतना भी तैयार करनी होगी कि इससे खुद की ही सुरक्षा है। क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि जहाँ सख्ती होती है व्यक्ति वहाँ तो हेलमेट पहन लेता है। उस स्थान से पहले और बाद में उसे अपने साथ तो रखता हैं लेकिन सिर से उतार लेता है। यद्यपि ऐसा करके व्यक्ति दूसरों को नहीं बल्कि स्वयं को ही धोखा दे रहा है।