घर पर किसी समारोह का आयोजन होने पर लोग अपने सभी परिचितों को न्यौता
अवश्य भेजते हैं। परन्तु कुछ लोग निमंत्रण को उतनी गम्भीरता से नहीं लेते
जितना लेना चाहिए। निमंत्रण को गम्भीरता से न लेने के दुष्परिणाम निकलते
हैं। इसका अहसास मुझे हाल ही में अपने यहाँ सम्पन्न एक समारोह में हुआ।
गत् दिनों मेरे यहाँ एक समारोह का आयोजन हुआ था जो हर मायने में आशा से
अधिक सफल रहा। समारोह के बाद सभी लोग खुश दिखायी दे रहे थे। लेकिन मैं
अन्दर से कहीं खिन्न था। मुझे कुछ लोगों की अनुपस्थिति कचोट रही थी क्योंकि
मैंने बहुत ही चुन-चुनकर निमंत्रण दिया था। मुझे विश्वास था कि ये सभी लोग
अवश्य आएंगे।मैं समारोह में अनुपस्थित लोगों को बार-बार भूलने का प्रयास कर रहा था। लेकिन जब भी यह सोचता कि हो सकता है उनके सामने कोई विपरीत परिस्थिति बन गयी हो जिसके कारण वे नहीं आ सके तो तुरन्त ही यह विचार भी मन में आता कि वे फोन करके बधाई तो दे ही सकते थे और न पहुंच पाने का कुछ कारण ही बताते। ऐसा करने से मुझे लगता कि उन्हें मुझ से प्रेम है और वे मेरी ख़ुशी में शामिल होना चाहते थे लेकिन परिस्थितिवश नहीं आ सके। एक-दो लोगों ने ऐसा किया भी। उनके प्रति मन में कोई कटुता पैदा नहीं हुई। बल्कि ऐसा लगा जैसे वे भी समारोह में मेरे साथ हैं। जिन्होंने ऐसा नहीं किया उनके प्रति मन में तरह-तरह के कटु विचार घुमड़ने लगे।
अचानक
मुझे ध्यान आया कि कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण मैं भी तो कुछ
निमंत्रणों में शामिल नहीं हो पाया था और किन्हीं कारणों से उन्हें फोन भी
नहीं कर पाया। जबकि मैं सम्बन्धों को निभाने का भरपूर प्रयास करता हूँ।
लेकिन निमंत्रण के मामलों में वह गम्भीरता तो मुझमें भी नहीं दिखायी दी थी।
आज समारोह ने मुझे वह आईना दिखा दिया और मुझे समझ में आया कि मेरे अन्दर
यह कितनी बड़ी कमी है जो दिखाई नहीं देती लेकिन अपना प्रभाव छोडती है। इस
प्रकार की लापरवाही से सम्बन्ध कमजोर होते हैं, नष्ट होते हैं। जबकि जीवन
में सम्बन्धों का बहुत महत्व है और सम्बन्धों को बनाए रखने में मैं
विश्वास करता हूँ । इन्हें जतन से संजोकर रखने एवं निरन्तर सींचते रहने की
आवश्यकता है|
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