22 फरवरी 2012। किसी सम्बन्धी अथवा परिचित व्यक्ति की ख़ुशी के अवसर पर अपनी ख़ुशी प्रकट करने का बेहतर तरीका है उपहार देना। उपहार देने वाला व्यक्ति उपहार देते समय अपनी व सामने वाले की हैसियत, पसन्द-नापसन्द एवं परिस्थिति को ध्यान में रखता है। इसलिए उपहार प्रायः औपचारिकता निभाते प्रतीत होते हैं। प्रायः उनमें भावना की कमी दिखती है।
ऐसे माहौल में भी कभी-कभी उपहार इस प्रकार का दिया जाता है जो उपहार पाने वाले के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है। मेरे साथ भी आज ऐसा ही हुआ।
दो दिन पूर्व, 20 फरवरी 2012 सोमवार महाशिवरात्रि के दिन मुझे पौत्र रत्न प्राप्त हुआ। मैं पहली बार दादा बना। प्रायः लोग बधाई देते समय कह रहे हैं कि आपके घर में तो भोले शंकर का जन्म हुआ है। इस प्रकार की बधाइयों को सुनकर बहु-बेटा भी गदगद हैं। बच्चे के जन्म के दौरान बहू को बड़े आपरेशन से गुजरना पड़ा । इसलिए हम अभी भी अस्पताल में ही हैं। अस्पताल में दिन-रात बच्चे की देखभाल बहु आराधना की बड़ी बहन अर्चना कर रही है। मौसी के बारे में कहा जाता है कि वह माँ सी होती है। अर्चना जिस मनोयोग से बच्चे की देख-भाल कर रही है उसे देखने के बाद मैं भी इस बात से सहमत हूँ।
जब से बच्चा पैदा हुआ है उसे देखने वालों का तांता लगा हुआ है। बच्चे को आर्शीबाद के साथ-साथ कुछ उपहार भी मिल रहे हैं। हांलाकि अस्पताल में उपहार देने का चलन नहीं हैं लेकिन यहाँ कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं। कोई नकद रूपये दे रहा है तो कोई फूल का बुके या ...............। इसी क्रम में आज श्री रत्नाकर सिंह आये। उन्होंने बच्चे को आर्शीबाद देते हुए एक मिठाई का डिब्बा दिया। मैंने डिब्बा खोला तो उसमें मोतीचूर के लड्डू के साथ तुलसी के पत्ते भी थे। डिब्बे पर हनुमान मन्दिर, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद का पता छपा था। यह सब देखकर मैं समझ गया कि यह मिठाई सिविल लाइन्स के हनुमान मन्दिर परिसर से खरीदकर हनुमान जी को भोग लगवाकर लाई गयी है। यह जानकर मुझे इतनी ज्यादा ख़ुशी हुई कि आँखें भी नम हो गयीं। श्री सिंह के इस महान भाव को देखकर मन में बार-बार यही विचार उठता रहा कि गला काट प्रतियोगिता वाले इस घोर स्वार्थी समाज में ऐसे भी लोग हैं जो किसी परिचित के इतने बड़े शुभचिंतक हो सकते हैं।
श्री सिंह से मेरा परिचय लगभग डेढ़ साल पूर्व एमवे की वजह से हुआ। वह उत्तर प्रदेश सरकार में सिविल इंजीनियर के पद पर सेवारत हैं। इनकी पत्नी श्रीमती किरन सिंह मल्टी नेशनल कम्पनी एमवे में सिल्वरपिन होल्डर हैं। एमवे से जुड़े किसी भी शख्स के लिए यह बहुत सम्मानजनक है। श्री सिंह अपनी पत्नी को एमवे में सहयोग करते हैं।
श्री सिंह अस्पताल में हमारे साथ लगभग आधा घन्टा रहे। इस दौरान उन्होंने बड़े इतमिनान से बातें कीं। इस दौरान आखिर मैंने भी उनसे पूछ ही लिया कि क्या आप किसी को मिठाई देते हैं तो ऐसा ही करते हैं अर्थात मन्दिर जाकर ईष्ट को भोग लगाने के पश्चात् किसी को देते हैं। इस पर उन्होंने कहा - ''सभी अवसरों पर ऐसा नहीं होता है। इससे पहले केवल दो-तीन ऐसे अवसर आये हैं। आज यहाँ आते समय अचानक मन में विचार आया कि रास्ते में सिविल लाइन्स वाला प्रतिष्ठित हनुमान मन्दिर पड़ेगा, क्यों न यहाँ हनुमान जी से बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करते हुए ही उसके पास जाया जाये।'' उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा - ''मेरा मानना है कि यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो दूसरों की ख़ुशी के लिए काम करिये और उनकी ख़ुशी के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करिये। दूसरे खुश रहेंगे तो आप भी जरूर खुश रहेंगे।'' वह इस भावना पर किस प्रकार अमल करते हैं, इस सन्दर्भ में उन्होंने एक उदाहरण दिया। उन्होंने बताया - '' प्रत्येक सोमवार की शाम मीरापुर में श्री अनुराग कपूर के घर पर एमवे की होम मीटिंग में मैं पत्नी के साथ जाता हूँ। रास्ते में उनके घर के पास पहले माँ ललिता देवी का प्रतिष्ठित मन्दिर है। मन्दिर के पास पहुँचते ही कुछ क्षणों के लिए अपना मन माँ के चरणों में लगाता हूँ और उनसे प्रार्थना करता हूँ कि जिस सपने को पूरा करने के लिए श्री कपूर एमवे से जुड़े हैं, वह अवश्य पूरा हो।''
श्री सिंह के उपहार के पीछे काम करने वाले महान भाव और विचारों ने मेरे मन पर जो छाप
छोड़ी उससे यह अनूठा उपहार तो हमेशा याद रहेगा ही साथ ही वह छाप उनके इस महान भाव और विचारों का अनुसरण करने के लिए भी प्रेरित करती रहेगी।
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