मुझे लिखने का कम पढने का शौक ज्यादा है | यह अलग बात है कि जितना पढना चाहता हूँ, उतना नहीं पढ़ पाता |
मैं प्रतिदिन कई समाचार पत्र खरीदता हूँ, पुस्तकें व पत्रिकाएँ भी खरीदता रहता हूँ | इसी के चलते घर में पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों का अम्बार लगा है | इनमें से अधिकांश अभी तक पढ़ी ही नहीं गयीं |
जिस दिन कोई पुस्तक व पत्रिका खरीदता हूँ, उस दिन चार-छह घंटे उसको खूब उलटता पलटता हूँ, बीच-बीच से कुछ अंश पढ़ भी लेता हूँ और यह सोचकर पुस्तक/पत्रिका कहीं सुरक्षित रख देता हूँ कि समय मिलने पर अवश्य पढूंगा | लेकिन वह समय शायद ही कभी आता है | कुछ पुस्तकें और पत्रिकाएं ही ऐसी होंगी जिन्हें मैंने पूरा पढ़ा होगा |
मेरे इस शौक से मेरे परिवार के कुछ सदस्य परेशान रहते हैं | उनका मानना है कि पुस्तकों, पत्रिकाओं एवं अख़बारों पर जो रकम खर्च होती है उसे घर की आवश्यकताओं में खर्च किया जाना चाहिए | परिवार के ये लोग कभी-कभी मुझसे कहते हैं - "देखना, किसी दिन हम इन पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों को रद्दी में दे देंगे...........|"
उनकी आपत्ति के चलते मैंने इस शौक को कई बार कम करने का मन बनाया लेकिन आज तक सफल नहीं हो पाया |
आज मैंने एक पुस्तक फिर खरीदी | किताब लेकर घर में घुसा ही था कि परिवार का एक सदस्य बोला- "पुरानी पुस्तकें अभी पढ़ी नहीं गयीं और आज फिर एक नई पुस्तक ले आये .........|"
"ठीक है, अब कोई पुस्तक नहीं खरीदूंगा" यह कह कर मैं अपने कमरे में चला गया और पुस्तक को उलटने पलटने लगा |
समझ में नहीं आ रहा कि मैं परिवार के इन लोगों को कैसे समझाऊँ - ये पुस्तकें मेरी बहुत मदद करती हैं | मैं जिस बैकग्राउन्ड का और जिस 'साधु' स्वभाव का हूँ उसे देखते हुए मैंने काफी उपलब्धियां हासिल की हैं और जो उपलब्धियां हासिल की हैं उसमें इन पुस्तकों का बहुत योगदान है |
उपलब्धि गाथा
मैं देहातनुमा कस्बाई साधारण परिवार से सम्बन्ध रखता हूँ | न मेरे परिवार में कोई खास पढ़ा-लिखा है, न मैं हाइली क्वालिफाइड हूँ | छात्र जीवन में यह भी मालूम नहीं था कि कौन-कौन सी नौकरियां होती हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए क्या करना होता है |
अंग्रेजी व कम्प्यूटर की अच्छी जानकारी आज के कैरियर के लिए पहली जरुरत है | मैं अंग्रेजी फर्राटेदार नहीं बोल सकता, काम चलाऊं जानता हूँ | कम्प्यूटर तो बिलकुल नहीं आता | इसके बावजूद एक महानगर में प्रतिष्ठित प्राइवेट संस्थान में महत्वपूर्ण पद पर नौकरी कर रहा हूँ | तनख्वाह ठीक-ठाक है, घर का खर्च चल जाता है | हांलाकि अब तक रहने के लिए अपना एक छोटा सा मकान भी नहीं बनवा पाया हूँ | संस्थान में अच्छी-खासी प्रतिष्ठा है | लोग भरोसा करते हैं | उनकी नजर में मैं एक 'महान' व्यक्ति हूँ |
मैं कितना 'महान' हूँ इसका तो मुझे नहीं पता लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि आप एक संवेदनशील व धनात्मक विचारों वाले व्यक्ति हैं, इसमें जरुर कुछ न कुछ सच्चाई होगी क्योंकि मैं दूसरों की वेदनाओं को महसूस करके उन्हें दूर करने का हर सम्भव प्रयास करता हूँ | आज के स्वार्थी समय में यदि किसी व्यक्ति में बड़ी उम्र तक संवेदनशीलता बची है तो यह भी कुछ कम नहीं है |
मैं कितना 'महान' हूँ इसका तो मुझे नहीं पता लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि आप एक संवेदनशील व धनात्मक विचारों वाले व्यक्ति हैं, इसमें जरुर कुछ न कुछ सच्चाई होगी क्योंकि मैं दूसरों की वेदनाओं को महसूस करके उन्हें दूर करने का हर सम्भव प्रयास करता हूँ | आज के स्वार्थी समय में यदि किसी व्यक्ति में बड़ी उम्र तक संवेदनशीलता बची है तो यह भी कुछ कम नहीं है |
कई बार ऐसा होता है कि दूसरों का मेरे साथ व्यवहार मेरी अपेक्षाओं के अनुसार नहीं होता | उस समय मेरा मन एक बार तो उसे सबक सिखाने को आतुर हो उठता है, लेकिन कुछ ही समय बाद मन स्थिर हो जाता है और बदले की भावना नहीं रहती | यह भी क्या कुछ कम है ?
मैं प्रायः तनावमुक्त एवं प्रसन्नचित रहता हूँ | शारीरिक रूप से जरूर कुछ कमजोर हो गया हूँ, उम्र हो गई है न, लेकिन काम करने में हर समय युवाओं जैसा जोश रहता है |
विभिन्न क्षेत्रों के कई अतिशिक्षित एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मेरे दोस्ताना सम्बन्ध हैं | और अब तो ब्लॉग के माध्यम से दूर-दूर तक (विदेशों तक) लोग मुझे जानने लगे हैं और मेरे कार्य की सराहना कर रहे हैं |
मुझे कई बार विपत्तियों ने घेर लिया | ये विपत्तियाँ कभी मेरी मूर्खताओं के कारण आयीं तो कभी दूसरों की दुष्टताओं के कारण | लेकिन मैं विपत्तियों में टूटा नहीं, हमेशा विपत्तियों से उबरा और न केवल उबरा बल्कि पहले से ज्यादा ताकतवर बनकर उबरा |
मैं तो यही मानता हूँ कि ये उपलब्धियां कम नहीं हैं और इन सभी उपलब्धियों का अधिकांश श्रेय पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों को ही जाता है |
मैं तो यही मानता हूँ कि ये उपलब्धियां कम नहीं हैं और इन सभी उपलब्धियों का अधिकांश श्रेय पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों को ही जाता है |
क्या मेरी इन उपलब्धियों का लाभ मेरे परिवार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलता है ? या फिर नहीं मिलेगा ?
बताइए, मैं अपने इस शौक को छोडूं तो कैसे छोडूं ?
आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट! आप अपना हौसला और युवाओं जैसा जोश बनाये रहें। घर वाले भी आपको मानते हैं और कार्यस्थल पर भी।
ReplyDeleteआपके स्वास्थ्य के लिये मंगलकामनायें।
अच्छा और खूब पढ़ना ही अच्छा लेखन लेकर आयेगा...जारी रहें.
ReplyDeleteबिलकुल मत छोडिये बल्कि उन्हें ये समझाईये कि आज आप जो कुछ भी हैं इन पुस्तकों के कारण ही हैं। शुभकामनायें
ReplyDeleteशुभकामनाएं...।
ReplyDeleteआपका और मेरा शौक एक सा है .लिखते रहिये
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